“नीलकंठ” कहानी में लेखिका महादेवी वर्मा ने अपने पालतू मोर नीलकंठ के साथ अपने अनुभवों को साझा किया है। कहानी में नीलकंठ के बचपन से लेकर उसकी मृत्यु तक का सफर दर्शाया गया है।
नीलकंठ का आगमन:
लेखिका ने एक बार चिड़ियाखाने से दो छोटे-छोटे मोर के बच्चों को खरीदा था। उनमें से एक मोर की गर्दन नीली थी, इसलिए उन्होंने उसका नाम नीलकंठ रखा। नीलकंठ और उसकी मोरनी राधा लेखिका के घर में ही पले-बढ़े।
नीलकंठ का स्वभाव:
नीलकंठ एक बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान मोर था। वह लेखिका के साथ बहुत लगाव रखता था और अक्सर उसके साथ खेलता रहता था। वह अन्य पक्षियों पर भी अपना अधिकार जमाता था और उनकी रक्षा करता था।
नीलकंठ का दुखद अंत:
एक दिन एक घायल मोरनी को लेखिका के घर लाया गया। उसे ठीक करने के बाद, उसे नीलकंठ के पिंजरे में रखा गया। लेकिन यह मोरनी नीलकंठ और राधा के बीच कलह का कारण बन गई। अंततः, इस मोरनी ने राधा के अंडों को तोड़ दिया, जिससे नीलकंठ और राधा बहुत दुखी हुए।
निबंध से
1. मोर – मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए ?
उत्तर :
कहानी में मोर और मोरनी के नाम उनके विशेष गुणों के आधार पर रखे गए।
2. जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?
उत्तर :
जब नीलकंठ और राधा को जाली के बड़े घर में लाया गया, तो अन्य जानवरों ने उनका स्वागत बहुत उत्साह से किया। मानो घर में कोई नई बहू आई हो।
- कबूतर: लक्का कबूतर नाचना बंद करके उनके चारों ओर घूमने लगा और गुटरगूं करने लगा, मानो वह उनका अभिवादन कर रहा हो।
- खरगोश: बड़े खरगोश शांत भाव से बैठकर उन्हें देख रहे थे, मानो वे एक समिति की तरह मोरों का निरीक्षण कर रहे हों। छोटे खरगोश उनके आसपास उछल-कूद मचा रहे थे, मानो उनके आने से खेल का मौका मिल गया हो।
- तोता: तोता एक आँख बंद करके मोरों का परीक्षण कर रहा था, मानो वह उनकी बनावट और रंगों को बारीकी से देख रहा हो।
3. लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
उत्तर :
नृत्य: जब बारिश होती थी और मेघ गरजते थे, तो नीलकंठ अपनी पूंछ फैलाकर बहुत खूबसूरती से नृत्य करता था। उसकी यह चेष्टा लेखिका को बहुत भाती थी।
लेखिका के साथ खेलना: नीलकंठ लेखिका के साथ बहुत खेलता था। वह उनके हाथ से चने खाता था और उनके साथ घूमता फिरता था।
लेखिका को प्रसन्न करने की चेष्टा: नीलकंठ जानता था कि लेखिका को उसका नृत्य बहुत पसंद है। इसलिए वह जब भी लेखिका के सामने होता, तो नृत्य करने की मुद्रा में खड़ा हो जाता।
साहस: एक बार नीलकंठ ने एक सांप को मारकर लेखिका को बचाया था। यह देखकर लेखिका बहुत प्रभावित हुई थीं।
4. ‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’ – वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर :
यह वाक्य उस घटना की ओर संकेत करता है जब लेखिका ने एक घायल मोरनी को घर लाई और उसका नाम कुब्जा रखा। कुब्जा स्वभाव से बहुत ही ईर्ष्यालु थी और वह नीलकंठ और राधा के बीच हमेशा कलह पैदा करती रहती थी। कुब्जा के आने से पहले, नीलकंठ और राधा का जीवन बहुत सुखद था। वे एक-दूसरे के साथ बहुत प्यार करते थे और लेखिका के साथ भी उनका बहुत अच्छा बंधन था। लेकिन कुब्जा के आने के बाद, इस खुशहाल माहौल में कड़वाहट घुल गई।
5. वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था ?
उत्तर :
वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय इसलिए हो जाता था क्योंकि वह एक स्वतंत्रता-प्रेमी पक्षी था और प्रकृति के साथ गहरा नाता रखता था। वसंत ऋतु में प्रकृति अपने सबसे खूबसूरत रूप में होती है। पेड़-पौधे फूलों से लद जाते हैं, नई कलियां फूटती हैं और पक्षी चहचहाते हैं।
6. जालीघर में रहनेवाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
उत्तर :
कुब्जा एक ईर्ष्यालु और अहंकारी मोरनी थी। उसे नीलकंठ पर अधिकार जमाना था और वह नहीं चाहती थी कि कोई और नीलकंठ के करीब आए। यही कारण था कि वह अन्य जीवों से हमेशा लड़ती रहती थी और उन्हें नीलकंठ से दूर रखने की कोशिश करती थी।
7. नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर :
जब नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप के मुंह में फंसे हुए देखा, तो उसने बिना किसी हिचकिचाहट के साँप का सामना किया। वह साँप के पास गया और अपनी तेज चोंच से साँप पर हमला कर दिया। नीलकंठ ने साँप को मारकर खरगोश के बच्चे को मुक्ति दिलाई।
नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से बचाने की घटना, उसकी दयालुता, साहस और जिम्मेदारी की भावना को दर्शाती है।
निबंध से आगे
1. यह पाठ एक ‘रेखाचित्र’ है। रेखाचित्र की क्या – क्या विशेषताएँ होती हैं ? जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए ।
उत्तर :
रेखाचित्र की प्रमुख विशेषताएँ:
- संक्षिप्तता: रेखाचित्र में विषय को संक्षेप में ही प्रस्तुत किया जाता है।
- सजीवता: रेखाचित्र में चित्रात्मक भाषा का प्रयोग किया जाता है ताकि पाठक मन में चित्र उभार सकें।
- मार्मिकता: रेखाचित्र में भावनाओं को गहराई से उभारा जाता है।
- व्यक्तिगत अनुभव: रेखाचित्र में लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करता है।
- विशिष्टता: रेखाचित्र में किसी विशिष्ट व्यक्ति, वस्तु या घटना का वर्णन किया जाता है।
- भावुकता: रेखाचित्र में भावुकता और संवेदनशीलता का पुट होता है।
- सरल भाषा: रेखाचित्र में सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया जाता है।
अनुमान और कल्पना
1. निबंध में आपने ये पंक्तियाँ पढ़ी हैं- ‘मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित- प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।’ इन पंक्तियों में एक भावचित्र है। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए कि मोरपंख की चंद्रिका और गंगा की लहरों में क्या-क्या समानताएँ लेखिका ने देखी होंगी जिसके कारण गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर पंख के समान तरंगित हो उठा।
उत्तर :
चमक और रंग: मोरपंख की चंद्रिकाएँ अपनी चमकदार और रंगीन बनावट के कारण पानी पर तैरती हुई बेहद आकर्षक लगती हैं। इसी तरह, गंगा का जल भी चंद्रमा के प्रकाश में चमकता हुआ एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। दोनों ही प्राकृतिक सौंदर्य के प्रतीक हैं।
तरंगित होना: मोरपंख की चंद्रिकाएँ हवा के झोंके से हिलती-डुलती रहती हैं और उनकी बनावट भी थोड़ी तरंगित होती है। इसी तरह, गंगा की लहरें भी लगातार गतिशील रहती हैं और तरंगित होती रहती हैं। दोनों में एक गतिशीलता और जीवन का भाव झलकता है।
विस्तार: जब मोरपंख की चंद्रिकाएँ पानी पर फैलती हैं तो वे पानी के एक बड़े हिस्से को ढक लेती हैं। इसी तरह, गंगा का चौड़ा पाट भी एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। दोनों में एक विशालता और विस्तार का भाव है।
आकार: मोरपंख की चंद्रिकाएँ अपने आकार में लहरदार होती हैं और पानी पर तैरती हुई वे एक विशाल पंख जैसा दृश्य प्रस्तुत करती हैं। इसी तरह, गंगा की लहरें भी दूर से देखने पर पंखों की तरह लग सकती हैं।
2. नीलकंठ की नृत्य – भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर :
“मेघों के गर्जन के साथ ही नीलकंठ ने अपना नृत्य आरंभ कर दिया। उसके पंखों का चमकदार नीला रंग सूर्य की किरणों में इस तरह चमक रहा था मानो आसमान में एक नया तारा उग आया हो। वह अपनी गर्दन को ऊपर नीचे करते हुए और पूंछ को फैलाते हुए ऐसा नाच रहा था मानो प्रकृति का ही कोई हिस्सा हो। उसके नृत्य में इतनी लय और ताल थी कि देखने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे।”
भाषा की बात
1. ‘रूप’ शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों से अन्य शब्द बनाओ-
गंध ,रंग ,फल ,ज्ञान
उत्तर :
गंध से बनने वाले कुछ शब्द:
- सुगंध: अच्छी खुशबू
- दुर्गंध: बुरी गंध
- गंधक: एक प्रकार का पीला रंग का तत्व
- अगंध: बिना गंध वाला
रंग से बनने वाले कुछ शब्द:
- रंगीन: रंगों से भरा हुआ
- बेरंग: रंगहीन
- रंगमंच: नाटक का मंच
- रंगरोगन: रंगों से रंगना
फल से बनने वाले कुछ शब्द:
- फलदार: फल देने वाला पेड़
- फलित: सफल हुआ
- अफल: असफल
- फलस्वरूप: परिणामस्वरूप
ज्ञान से बनने वाले कुछ शब्द:
- ज्ञानी: ज्ञानवान व्यक्ति
- अज्ञान: अज्ञानता
- विज्ञान: ज्ञान की एक शाखा
- ज्ञानेंद्रिय: ज्ञान प्राप्त करने के अंग (आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा)
2. विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण हैं। ये सभी वर्ण-ध्वनियों में व्याप्त हैं। व्यंजन वर्णों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे- क् + अ = क इत्यादि । अ की मात्रा के चिह्न (T) से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से अकार की मात्रा ही लगती है, जैसे – मंडल + आकार = मंडलाकार | मंडल और आकार की संधि करने पर ( जोड़ने पर ) मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर ( तोड़ने पर ) मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के संधि-विग्रह कीजिए-
संधि
नील + आभ = …….
नव + आगंतुक = ……..
विग्रह
सिंहासन =
मेघाच्छन्न =
उत्तर :
संधि
- नील + आभ = नीलाभ:
- नव + आगंतुक = नवागंतुक:
विग्रह
- सिंहासन = सिंह + आसन:
- मेघाच्छन्न = मेघ + आच्छन्न: