Friday, February 7, 2025

नौबतखाने में इबाद

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“नौबतखाने में इबादत” उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के जीवन और उनकी शहनाई के प्रति प्रेम को दर्शाने वाला एक रोचक पाठ है। यह पाठ हमें उनकी संगीत यात्रा, उनके व्यक्तित्व की सादगी और बनारस की संस्कृति के बारे में जानकारी देता है। बिस्मिल्लाह खान का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था जो शहनाई बजाने के लिए प्रसिद्ध था। उन्होंने अपने उस्ताद अली बख्श खाँ से संगीत की शिक्षा प्राप्त की। खान साहब बनारस और गंगा नदी से बहुत प्रेम करते थे। उनके लिए शहनाई उनकी इबादत थी। वे अपनी शहनाई को अपनी बेगम कहते थे और उससे बातें करते थे। यह पाठ उनके संगीत के प्रति समर्पण, सादगी भरे जीवन और बनारस की संस्कृति के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है। यह पाठ उस्ताद-शागिर्द परंपरा को भी दर्शाता है, जिसमें बिस्मिल्लाह खान अपने उस्ताद से संगीत सीखते हैं। “नौबतखाने में इबादत” एक प्रेरणादायक पाठ है जो हमें बिस्मिल्लाह खान के जीवन और उनकी शहनाई के प्रति प्रेम के बारे में बताता है और हमें सिखाता है कि हमें अपने काम के प्रति समर्पित रहना चाहिए और अपने मूल्यों को कभी नहीं भूलना चाहिए। यह पाठ भारतीय संस्कृति और संगीत की धरोहर को भी दर्शाता है।

प्रश्न- अभ्यास

1. शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है ?

उत्तर :

शहनाई की दुनिया में डुमरांव को दो मुख्य कारणों से याद किया जाता है। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का जन्मस्थान है। डुमरांव की धरती ने ही शहनाई के इस जादूगर को जन्म दिया और उनकी कला ने इस छोटे से स्थान को विश्व मानचित्र पर ला दिया। दूसरा कारण शहनाई में इस्तेमाल होने वाली रीड से जुड़ा है। शहनाई की रीड, जो उसके स्वर के लिए अत्यंत आवश्यक है, नरकट से बनाई जाती है। यह नरकट डुमरांव में सोन नदी के किनारे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए, शहनाई की मधुर ध्वनि और डुमरांव का गहरा नाता है, और यही वजह है कि शहनाई की दुनिया में डुमरांव को हमेशा याद किया जाता है।

2. बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर :

उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने शहनाई को लोक वाद्य की सीमाओं से निकालकर शास्त्रीय संगीत के मंच पर प्रतिष्ठित किया। उन्होंने अपने अद्वितीय वादन कौशल और संगीत के प्रति समर्पण से शहनाई को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। शहनाई, जो अक्सर मंगल अवसरों पर बजाई जाती है, को उन्होंने अपनी भावपूर्ण और रुहानी धुन से और भी मंगलमय बना दिया। उनकी शहनाई की आवाज लोगों के दिलों को छू जाती थी, और यही कारण है कि उन्हें ‘मंगल ध्वनि का नायक’ कहा गया। इसके अतिरिक्त, बिस्मिल्लाह खाँ और शहनाई एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं, उनकी पहचान एक दूसरे से इतनी जुड़ी हुई है कि शहनाई का जिक्र होते ही उनकी छवि स्वतः ही मन में आ जाती है।

3. सुषिर – वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को ‘सुषिर वाद्यों में शाह’ की उपाधि क्यों दी गई होगी?

उत्तर :

सुषिर वाद्य उन वाद्यों को कहते हैं जिन्हें फूंक मारकर बजाया जाता है, जिनमें हवा भरने के लिए एक नली या छेद होता है, जैसे बांसुरी, शहनाई, और हारमोनियम। शहनाई को “सुषिर वाद्यों में शाह” की उपाधि कई कारणों से मिली है। यह भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय सुषिर वाद्य है, जिसका उपयोग विवाह, उत्सवों और महत्वपूर्ण अवसरों पर किया जाता है। इसकी ध्वनि अत्यंत मधुर और कर्णप्रिय होती है, जिसमें एक विशेष आकर्षण होता है जो श्रोताओं को बांधे रखता है। शहनाई वादन में अत्यधिक कुशलता और महारत की आवश्यकता होती है, और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे वादकों ने अपनी भावपूर्ण शैली से इसे और भी लोकप्रिय बनाया। इसके अलावा, शहनाई विभिन्न रागों को बजाने में सक्षम है, और इसका उपयोग शास्त्रीय, लोक और फिल्मी संगीत में समान रूप से होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण शहनाई को सुषिर वाद्यों का राजा माना जाता है।

4. आशय स्पष्ट कीजिए-

(क) ‘फटा सुर न बख्शें । लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी। ‘

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ । ‘

उत्तर :

(क) ‘फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।’

यह कथन उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की कला के प्रति उनकी अटूट निष्ठा और समर्पण को दर्शाता है। वे कहते हैं कि संगीत में सुर की पवित्रता सर्वोच्च है। यदि सुर सही नहीं है, तो वह संगीत नहीं है, चाहे वह कितना भी सुंदर या आकर्षक क्यों न हो। लुंगिया, जो कि एक प्रकार का वस्त्र है, उसके फटने पर उसे दोबारा सिया जा सकता है, यानी उसकी मरम्मत की जा सकती है। लेकिन, एक बार सुर बिगड़ गया, तो उसे ठीक करना मुश्किल है। इसलिए, उनके लिए लुंगिया की तुलना में सुर की शुद्धता अधिक महत्वपूर्ण है। वे अपने संगीत में किसी भी प्रकार की त्रुटि या कमी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं।

(ख) ‘मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।’

यह कथन उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की ईश्वर के प्रति गहरी आस्था और संगीत की आध्यात्मिक शक्ति में उनके विश्वास को प्रकट करता है। वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें ऐसा सुर प्रदान करें जो इतना प्रभावशाली और भावपूर्ण हो कि उसे सुनकर लोगों की आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। यहाँ ‘अनगढ़ आँसू’ सच्चे और स्वाभाविक भावनाओं का प्रतीक हैं। वे चाहते हैं कि उनका संगीत लोगों के दिलों को छू जाए और उन्हें एक आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करे। उनके लिए संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह ईश्वर से जुड़ने और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है।

5. काशी में हो रहे कौन-से परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे?

उत्तर :

काशी में हो रहे कई परिवर्तन बिस्मिल्ला खाँ को व्यथित करते थे। सबसे प्रमुख बात थी पुरानी परंपराओं का धीरे-धीरे लुप्त होना। काशी, जो अपनी संगीत, साहित्य और भाईचारे की समृद्ध परंपरा के लिए जाना जाता था, अब उन मूल्यों को खो रहा था। उन्हें लगता था कि काशी की संस्कृति का क्षरण हो रहा है। इसके साथ ही, खान-पान में भी बदलाव आ रहा था। काशी के विशिष्ट व्यंजन, जो कभी लोगों की पहचान थे, अब कम दिखते थे, और उनकी जगह आधुनिक फास्ट फूड ने ले ली थी। संगीत और कलाकारों के प्रति अनादर भी उन्हें परेशान करता था। कभी संगीत को ईश्वर की आराधना समझा जाता था और कलाकारों को समाज में उचित सम्मान दिया जाता था, लेकिन अब यह सब कम हो रहा था। सबसे अधिक उन्हें हिंदू-मुस्लिम भाईचारे में कमी खलती थी। कभी काशी की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल दी जाती थी, जहाँ दोनों समुदायों के लोग मिलजुल कर रहते थे, लेकिन अब उनके बीच दूरियां बढ़ रही थीं, जिसने उन्हें अत्यंत व्यथित किया। इन सभी परिवर्तनों ने बिस्मिल्ला खाँ को काशी के भविष्य के बारे में चिंतित कर दिया था।

6. पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि-

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

(ख) वे वास्तविक अर्थों में एक सच्चे इनसान थे।

उत्तर : 

(क) बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे क्योंकि वे एक मुस्लिम होकर भी हिंदू धर्म के प्रति समर्पित थे, काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई बजाते थे, और उनकी शहनाई की धुनें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक थीं। उनकी कला में शास्त्रीय और लोक संगीत का मिश्रण था, और उन्होंने हमेशा भारतीय संस्कृति की साझी विरासत को महत्व दिया।

(ख) बिस्मिल्ला खाँ एक सच्चे इंसान थे क्योंकि वे सादगी भरा जीवन जीते थे, विनम्र थे, सभी इंसानों से प्रेम करते थे, गरीबों की मदद करते थे, देशभक्त थे, और अपनी कला के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।

7. बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया?

उत्तर :

बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में कई घटनाएं और व्यक्ति थे जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया। बचपन में उन्हें संगीत की प्रेरणा रसूलनबाई और बतूलनबाई से मिली, जिनके गायन को सुनकर वे संगीत के प्रति आकर्षित हुए। उनके उस्ताद, अली बख्श खाँ, ने उन्हें शहनाई बजाना सिखाया और संगीत की गहरी समझ प्रदान की। बनारस और गंगा नदी का उनके जीवन में विशेष महत्व था; बनारस उनकी संस्कृति का केंद्र था, और गंगा उनकी माँ के समान पूजनीय थीं। इन दोनों ने उनकी संगीत को एक विशेष पहचान दी। वे बालाजी मंदिर में नियमित रूप से शहनाई बजाते थे, जो उनकी साधना का अभिन्न अंग था। सबसे बढ़कर, बिस्मिल्ला खाँ का संगीत के प्रति पूर्ण समर्पण था। उन्होंने जीवन भर संगीत की साधना की, जिससे उनकी कला अद्वितीय बन पड़ी। इन सभी तत्वों ने मिलकर उनकी संगीत यात्रा को समृद्ध किया और उन्हें एक महान कलाकार के रूप में स्थापित किया।

रचना और अभिव्यक्ति

8. बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

उत्तर :

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कई विशेषताओं ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। उनकी सादगी सबसे उल्लेखनीय थी; वे एक बेहद साधारण जीवन जीते थे, किसी प्रकार के दिखावे से दूर, अपनी सफलता के बावजूद हमेशा जमीन से जुड़े रहे। उनका संगीत के प्रति समर्पण अद्भुत था; संगीत उनकी इबादत थी, जिसके लिए वे जीवन भर समर्पित रहे। उनकी देशभक्ति भी प्रेरणादायी थी; वे सच्चे देशभक्त थे, अपने देश से बेहद प्रेम करते थे, और उन्होंने अपनी कला से देश का नाम रोशन किया। उनकी मानवता ने भी मुझे प्रभावित किया; वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और हिंदू-मुस्लिम एकता में विश्वास रखते थे। भाईचारे के प्रति उनका अटूट विश्वास और सभी के प्रति प्रेम उन्हें विशिष्ट बनाता था। अपनी तमाम उपलब्धियों के बाद भी वे बेहद विनम्र थे, हमेशा दूसरों के साथ सम्मान से पेश आते थे। कुल मिलाकर, बिस्मिल्ला खाँ का व्यक्तित्व सादगी, समर्पण, देशभक्ति, मानवता, भाईचारा और विनम्रता का एक अद्भुत संगम था, जो हमें सिखाता है कि एक अच्छा इंसान कैसे बना जाता है और जीवन को कैसे सार्थक किया जाता है।

9. मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर :

मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का गहरा जुड़ाव था। मुहर्रम, जो इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, शिया मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह महीना इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है।

बिस्मिल्ला खाँ, जो एक प्रसिद्ध शहनाई वादक थे, मुहर्रम के दौरान शोक मनाते थे और अपनी शहनाई से मार्मिक धुनें बजाकर इमाम हुसैन और उनके साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते थे।

मुहर्रम के दस दिनों तक उनके परिवार का कोई सदस्य शहनाई नहीं बजाता था। वे इन दिनों में संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लेते थे। आठवीं तारीख उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन वे खड़े होकर शहनाई बजाते थे और दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक नौहा बजाते हुए जुलूस में शामिल होते थे।

मुहर्रम के प्रति उनकी यह श्रद्धा और जुड़ाव उन्हें एक सच्चा इंसान और कलाकार साबित करती है। उनकी कला और उनका जीवन हमें सिखाता है कि हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करना चाहिए और मिलजुल कर रहना चाहिए।

10. बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए ।

उत्तर :

यह कहना बिल्कुल सही है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे। उनके जीवन और उनकी कला में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जो इस बात को साबित करते हैं:

  • संगीत के प्रति अटूट समर्पण: बिस्मिल्ला खाँ का संगीत के प्रति जो समर्पण था, वह अद्वितीय था। उन्होंने अपने जीवन के 80 वर्षों से भी अधिक समय तक शहनाई बजाई। उनकी शहनाई उनके लिए सिर्फ एक वाद्य यंत्र नहीं था, बल्कि उनकी आत्मा का एक हिस्सा था। वे अपनी शहनाई को अपनी बेगम कहते थे और उससे बातें करते थे।
  • कला के प्रति पूर्ण समर्पण: बिस्मिल्ला खाँ कला के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। वे अपनी कला को लेकर बहुत गंभीर थे और उन्होंने जीवन भर संगीत की साधना की। वे कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे।
  • सादगी भरा जीवन: बिस्मिल्ला खाँ एक बेहद साधारण और सादगी भरा जीवन जीते थे। उन्हें किसी प्रकार का दिखावा या आडंबर पसंद नहीं था। वे अपनी उपलब्धियों के बावजूद हमेशा जमीन से जुड़े रहे।
  • धन-दौलत से ऊपर कला: बिस्मिल्ला खाँ ने कभी भी धन-दौलत को महत्व नहीं दिया। उनके लिए उनकी कला ही सबसे बड़ी दौलत थी। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से लोगों के दिलों को जीता और यही उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था।
  • अंतिम समय तक संगीत: बिस्मिल्ला खाँ ने अपने अंतिम समय तक संगीत का साथ नहीं छोड़ा। वे 90 वर्ष की उम्र में भी शहनाई बजाते थे। उनकी मृत्यु भी संगीत के सुरों के साथ ही हुई।

भाषा – अध्ययन

11. निम्नलिखित मिश्र वाक्यों के उपवाक्य छाँटकर भेद भी लिखिए-

(क) यह ज़रूर है कि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं।

(ख) रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है।

(ग) रीड नरकट से बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। 

(घ) उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा।

(ङ) हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता है जिसकी गमक उसी में समाई है।

(च) खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही है कि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखा।

उत्तर :

वाक्यप्रधान उपवाक्यआश्रित उपवाक्यभेद
(क)यह ज़रूर हैकि शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैंसंज्ञा आश्रित उपवाक्य
(ख)रीड अंदर से पोली होती हैजिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता हैविशेषण आश्रित उपवाक्य
(ग)रीड नरकट से बनाई जाती हैजो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती हैविशेषण आश्रित उपवाक्य
(घ)उनको यकीन हैकभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगासंज्ञा आश्रित उपवाक्य
(ङ)हिरन अपनी ही महक से परेशान पूरे जंगल में उस वरदान को खोजता हैजिसकी गमक उसी में समाई हैविशेषण आश्रित उपवाक्य
(च)खाँ साहब की सबसे बड़ी देन हमें यही हैकि पूरे अस्सी बरस उन्होंने संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने भीतर जिंदा रखासंज्ञा आश्रित उपवाक्य

12. निम्नलिखित वाक्यों को मिश्रित वाक्यों में बदलिए-

(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

(ग) धत् ! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं ।

(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

उत्तर :

(क) इसी बालसुलभ हँसी में कई यादें बंद हैं।

मिश्र वाक्य: यह वह बालसुलभ हँसी है जिसमें कई यादें बंद हैं।

(ख) काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है।

मिश्र वाक्य: काशी में संगीत आयोजन की एक ऐसी परंपरा है जो प्राचीन एवं अद्भुत है।

(ग) धत् ! पगली ई भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं।

मिश्र वाक्य: धत् ! पगली, यह भारतरत्न हमको शहनईया पे मिला है, लुंगिया पे नाहीं, क्योंकि यह हमारी कला का सम्मान है, किसी वस्त्र का नहीं।

(घ) काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा।

मिश्र वाक्य: काशी का नायाब हीरा हमेशा से दो कौमों को एक होकर आपस में भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता रहा है, जो इस शहर की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।

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Dr. Upendra Kant Chaubey
Dr. Upendra Kant Chaubeyhttps://education85.com
Dr. Upendra Kant Chaubey, An exceptionally qualified educator, holds both a Master's and Ph.D. With a rich academic background, he brings extensive knowledge and expertise to the classroom, ensuring a rewarding and impactful learning experience for students.
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