“बालगोबिन भगत” कहानी में बालगोबिन भगत एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने गृहस्थ जीवन जीते हुए भी साधु समान जीवन व्यतीत किया। वे कबीर पंथ के अनुयायी थे और कबीर के विचारों को अपने जीवन में उतारते थे। उन्होंने सादा जीवन जिया, भौतिक सुखों से दूरी बनाए रखी, समाज सेवा में लगे रहे और अहिंसा के मार्ग पर चले। बालगोबिन भगत का जीवन हमें सिखाता है कि सांसारिक सुखों से जुड़े रहते हुए भी आध्यात्मिक शांति प्राप्त की जा सकती है और एक संतुलित जीवन जीया जा सकता है।
प्रश्न- अभ्यास
1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत एक गृहस्थ होते हुए भी साधु कहलाने के योग्य थे क्योंकि वे कबीर पंथ के अनुयायी थे और कबीर के विचारों को अपने जीवन में उतारते थे। उन्होंने सादा जीवन जिया, भौतिक सुखों से दूरी बनाए रखी और समाज सेवा में लगे रहे। अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए, उन्होंने कभी किसी को दुख नहीं पहुँचाया। उन्होंने गृहस्थ जीवन जीते हुए भी साधुओं की तरह संयम और त्याग का जीवन जिया। इन सभी गुणों के कारण बालगोबिन भगत को साधु के समान माना जाता था।
2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर :
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले इसलिए नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि वह उनकी देखभाल करना चाहती थी। भगत जी वृद्ध हो चुके थे और उन्हें किसी की देखभाल की आवश्यकता थी। पुत्रवधू के मन में उनके प्रति गहरा सम्मान और प्रेम था। वह जानती थी कि भगत जी के पास कोई और नहीं है जो उनकी देखभाल कर सके।
3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर :
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को जीवन चक्र का एक स्वाभाविक हिस्सा माना। उन्होंने शोक मनाने के बजाय, बेटे के शरीर को सजाकर उत्सव का माहौल बनाया और भक्ति गीत गाए। उन्होंने अपनी पत्नी को भी शांत रहने के लिए प्रोत्साहित किया। इस घटना से पता चलता है कि भगत में गहरा आध्यात्मिक दृष्टिकोण था।
4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर :
बालगोबिन भगत का जीवन बेहद सादा था। वे सादे कपड़े पहनते थे और हमेशा हँसमुख रहते थे। उनका व्यक्तित्व शांत, विनम्र और सहनशील था। वे कबीर पंथ के अनुयायी थे और अहिंसा में विश्वास रखते थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि भौतिक सुखों से दूर रहकर भी एक खुशहाल जीवन जीया जा सकता है।
5. बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के लिए इसलिए अचरज की बात थी क्योंकि वे एक गृहस्थ होते हुए भी साधुओं जैसे गुणों का प्रदर्शन करते थे। वे एक साधारण जीवन जीते थे, हमेशा कबीर के भजन गाते थे और समाज सेवा में लगे रहते थे।
6. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत के गीतों में कबीर के विचारों का समावेश था, उनमें सच्ची भावना झलकती थी और वे बहुत ही सरल थे। उनके गीतों में प्रकृति का वर्णन खूबसूरती से किया गया था और उनमें एक जीवंदायी शक्ति थी। उनके गीतों ने लोगों को प्रेरित किया और उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।
7. कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर :
बालगोबिन भगत एक ऐसे व्यक्ति थे जो समाज की कई रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती देते थे। जब उनके बेटे की मृत्यु हुई, तो उन्होंने शोक मनाने के बजाय, उत्सव मनाया, जो समाज की परंपराओं के विपरीत था। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को पुनर्विवाह के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि उस समय विधवाओं के पुनर्विवाह को स्वीकार नहीं किया जाता था। वे जाति-पाति के भेदभाव के खिलाफ थे और सभी लोगों के साथ समानता का व्यवहार करते थे। कबीर पंथ के अनुयायी होने के कारण, वे समाज की रूढ़िवादी मान्यताओं और अंधविश्वासों का विरोध करते थे। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत एक स्वतंत्र विचारक थे जो समाज की रूढ़ियों से बंधे नहीं थे।
8. धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द- चित्र प्रस्तुत कीजिए |
उत्तर :
बालगोबिन भगत के मधुर स्वर धान की रोपाई के माहौल को एक जादुई रंग में भर देते थे। हरे-भरे खेतों में किसान और किसानियाँ धान के पौधे रोप रहे थे, जबकि भगत अपने मधुर स्वर में भजन गा रहे थे। उनकी आवाज इतनी मधुर थी कि मानो कोयल कुक रही हो। उनके गीतों में जीवन और प्रकृति का वर्णन होता था, जिसे सुनकर सभी मुस्कुराने लगते थे। महिलाएं उनके गीतों को गुनगुनाने लगती थीं, बच्चे थिरकने लगते थे और पूरा माहौल संगीत से भर जाता था। भगत के गीतों ने सभी को एक सूत्र में बांध दिया था और उनके बीच प्रेम और भाईचारा का भाव पैदा किया था। ऐसा लगता था कि प्रकृति भी उनके गीतों को सुनकर खुश हो रही है। इस तरह, बालगोबिन भगत के मधुर स्वर ने धान की रोपाई के माहौल को एक अविस्मरणीय अनुभव बना दिया था।
रचना और अभिव्यक्ति
9. पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
बालगोबिन भगत की कबीर पर गहरी श्रद्धा थी, जो उनके जीवन के हर पहलू में परिलक्षित होती थी। उन्होंने कबीर पंथ के उपदेशों को अपने जीवन में उतारा, सादा जीवन जीया, समाज सेवा की, अहिंसा का पालन किया और सभी धर्मों का सम्मान किया, ठीक वैसे ही जैसे कबीर ने सिखाया था। उन्होंने मृत्यु को जीवन चक्र का एक हिस्सा मानते हुए शांति से स्वीकार किया, जो कबीर के दर्शन के अनुरूप था। बालगोबिन भगत कबीर के भजनों को गाते थे और प्रकृति से प्रेम करते थे, जो कबीर के विचारों से जुड़े हुए थे। इन सभी उदाहरणों से स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत ने कबीर के विचारों को अपने जीवन में पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था।
10. आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के कई कारण हो सकते हैं। कबीर के विचारों में बालगोबिन भगत को सामाजिक कुरीतियों का समाधान और जीवन जीने का एक नया रास्ता मिला होगा। कबीर ने समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत और अंधविश्वास का विरोध किया था, जो बालगोबिन भगत के विचारों से मेल खाता था। कबीर ने सादा जीवन जीने का उपदेश दिया था, जिसका पालन बालगोबिन भगत ने किया। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया, मृत्यु को जीवन चक्र का एक हिस्सा माना और समाज सेवा में लगे रहे, जो सभी कबीर के दर्शन से प्रभावित थे। कबीर के भजनों में भक्ति और प्रेम का भाव प्रचुर मात्रा में था, जो बालगोबिन भगत के गीतों में भी झलकता था। इन सभी कारणों से बालगोबिन भगत कबीर के विचारों से गहराई से प्रभावित हुए होंगे और उनकी कबीर पर अगाध श्रद्धा रही होगी।
11. गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
आषाढ़ का महीना गाँव के लिए बहुत खास होता है। इस महीने में वर्षा ऋतु का आगमन होता है, जिससे खेत हरे-भरे हो जाते हैं और किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है। कई धार्मिक अनुष्ठान और सामाजिक उत्सव भी इसी महीने में मनाए जाते हैं, जो लोगों को एक साथ लाते हैं। बालगोबिन भगत जैसे लोग अपने मधुर गीतों से गाँव के माहौल को और भी खुशनुमा बना देते थे। इन सभी कारणों से आषाढ़ का महीना गाँव के लिए बहुत खास होता है और यह महीना खुशी, उल्लास और उम्मीदों से भर जाता है।
12. ” ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है ?
उत्तर :
किसी व्यक्ति को साधु कहने के लिए सिर्फ उसके पहनावे को देखना काफी नहीं है। हमें उसके आचरण, ज्ञान, त्याग, समाज सेवा और आध्यात्मिकता को भी देखना होगा। बालगोबिन भगत के मामले में, उनके जीवन और कार्यों से स्पष्ट है कि वे एक सच्चे साधु थे, भले ही उनका पहनावा एक साधारण किसान जैसा था।
अंत में, यह कहना गलत होगा कि “ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्योंकि साधु की पहचान सिर्फ उसके बाहरी रूप से नहीं होती है, बल्कि उसके अंतर्निहित गुणों से होती है।
13. मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत के जीवन में मोह और प्रेम के अंतर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जब उनके बेटे का निधन हुआ, तो उनके पास अपनी पुत्रवधू को अपने पास रखने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अपनी पुत्रवधू के भविष्य की चिंता की और उसे दूसरे विवाह के लिए प्रेरित किया। यदि वे अपनी पुत्रवधू को अपने पास रखना चाहते तो यह उनका मोह होता, लेकिन उन्होंने उसे स्वतंत्रता दी, जो उनके प्रेम का प्रमाण है। प्रेम एक निस्वार्थ भावना है जो हमें दूसरों के सुख-दुःख में भागीदार बनने के लिए प्रेरित करती है, जबकि मोह एक स्वार्थी भावना होती है। बालगोबिन भगत के जीवन से हम सीख सकते हैं कि प्रेम ही जीवन का सच्चा आधार है।
भाषा-अध्ययन
14. इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए ।
उत्तर :
थोड़ा बुखार आने लगा: (परिमाणवाचक) – यह बताता है कि बुखार कितना था।
धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा: (रीतिवाचक) – यह बताता है कि स्वर किस तरह ऊँचा हुआ।
हर वर्ष गंगा स्नान करने के लिए जाते थे: (कालवाचक) – यह बताता है कि यह कार्य कब होता था।
वे दिन-दिन छिजने लगे: (कालवाचक) – यह बताता है कि उनकी स्थिति धीरे-धीरे खराब होती गई।
हँसकर टाल देते थे: (रीतिवाचक) – यह बताता है कि वे किस तरह से टाल देते थे।
जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं: (स्थानवाचक) – यह बताता है कि वे कहाँ गीत गाते थे।
उस दिन भी संध्या में गीत गाए: (कालवाचक) – यह बताता है कि गीत कब गाए गए थे।
कपड़े बिल्कुल कम पहनते थे: (परिमाणवाचक) – यह बताता है कि वे कितने कपड़े पहनते थे।
इन दिनों सवेरे ही उठते थे: (कालवाचक) – यह बताता है कि वे कब उठते थे।
धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगा: (रीतिवाचक) – यह बताता है कि स्वर किस तरह ऊँचा हुआ।