Sunday, January 19, 2025

सवैये

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“सवैये” रसखान की एक महत्वपूर्ण रचना है जिसमें उन्होंने कृष्ण लीला का अत्यंत कोमल और मार्मिक वर्णन किया है। इस रचना में ब्रज की गोपियों के कृष्ण-प्रेम को केंद्र में रखा गया है। गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम इतना गहरा है कि वे उनके दर्शन मात्र से मुग्ध हो जाती हैं। कृष्ण की मुरली की धुन, उनकी मुस्कान, उनका रूप-सौंदर्य, सब कुछ गोपियों को मोहित कर लेता है। रसखान ने गोपियों की कृष्ण-प्रेम में डूबी हुई मनोस्थिति को बेहद मार्मिकता से व्यक्त किया है। उन्होंने श्रृंगार रस की प्रधानता के साथ गोपियों की कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम, विरह की पीड़ा और उनके मन की विचलित अवस्था को अत्यंत कोमलता और सुंदरता से चित्रित किया है। “सवैये” में रसखान ने सरल और प्रभावशाली भाषा का प्रयोग किया है, जिससे गोपियों की भावनाओं को सहजता से व्यक्त किया गया है। उन्होंने अपने वर्णन में चित्रात्मकता का भरपूर प्रयोग किया है, जिससे पाठक कृष्ण लीला को अपने सामने देख पाते हैं। “सवैये” ब्रजभाषा की एक महत्वपूर्ण रचना है और इसे हिंदी साहित्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
प्रश्न- अभ्यास

  1. ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है।
    उत्तर :
    रसखान का ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अगाध था। यह प्रेम धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक सभी पहलुओं से जुड़ा हुआ था। कृष्ण लीलाओं से सराबोर ब्रजभूमि उनके लिए पवित्र भूमि थी। वहाँ का हर कोना, हर पेड़-पौधा, हर नदी-तालाब उनके लिए कृष्ण की याद दिलाता था। ब्रजभूमि का प्राकृतिक सौंदर्य, वहाँ का सामाजिक जीवन, उनकी संस्कृति, उनकी रीति-रिवाज – सब कुछ कवि को मोहित करता था। उन्होंने ब्रजभूमि के सौंदर्य का विस्तार से वर्णन किया है, उसकी प्रशंसा की है और वहाँ रहने की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने यहां तक कहा है कि वे ब्रजभूमि के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। इस प्रकार, रसखान का ब्रजभूमि के प्रति प्रेम एक गहरा और बहुआयामी प्रेम था जो उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
  2. कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?
    उत्तर :
    कवि ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारकर कृष्ण लीलाओं को जीवंत करता है। इन स्थानों पर कृष्ण ने अपनी लीलाएँ की थीं, इसलिए ये स्थान कवि के लिए पवित्र और भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण हैं। इन स्थानों को देखकर कवि कृष्ण की लीलाओं को याद करते हैं और उनके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं। इसके अलावा, ब्रजभूमि का प्राकृतिक सौंदर्य भी कवि को मोहित करता है। वहाँ के हरियाली, खेत-खलिहान, यमुना नदी का दृश्य कवि को आनंदित करता है। ये स्थान कवि को शांति और आनंद प्रदान करते हैं। उन्होंने इन स्थानों पर जाकर अपने मन को शांत किया है और प्रकृति के साथ एकात्मता का अनुभव किया है। इस प्रकार, ब्रज के वन, बाग और तालाब कवि के लिए प्रेम, आस्था, शांति और आनंद के स्रोत हैं।
  3. एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?
    उत्तर :
    रसखान ब्रजभूमि और कृष्ण लीलाओं के प्रति अगाध प्रेम रखते थे। उनके लिए कृष्ण का हर रूप, हर वस्तु अत्यंत महत्वपूर्ण थी। लकुटी और कामरिया, जो कृष्ण के ग्वाला जीवन से जुड़ी वस्तुएं हैं, उनके लिए महान भावनात्मक मूल्य रखती हैं। ये वस्तुएं उन्हें कृष्ण की याद दिलाती हैं, उनके प्रेम को जागृत करती हैं। कवि इन वस्तुओं को पाकर कृष्ण के करीब महसूस करेंगे, उनके जीवन में एक आध्यात्मिक अनुभव होगा। इसीलिए, कृष्ण के प्रति अपने अगाध प्रेम के कारण, वे इन वस्तुओं के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार हैं। लकुटी और कामरिया उनके लिए केवल वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि कृष्ण के प्रेम और भक्ति का प्रतीक हैं।
  4. सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
    उत्तर :
    सखी ने गोपी से कृष्ण का ऐसा रूप धारण करने का आग्रह किया था जो उनकी मनोकामनाओं को पूरा कर सके, जो उनके हृदय को मोहित कर सके और जो उनके जीवन में आनंद ला सके। सखी ने शायद गोपी से कहा होगा कि वह वृंदावन के बाल गोपाल का रूप धारण करें, जो मुरली बजाते हुए गायों के साथ खेल रहे हों। यह रूप गोपी के मन में बचपन की मासूमियत और खुशी को जगा सकता था। या फिर, सखी ने गोपी से कहा होगा कि वह राधा के प्रेमी का रूप धारण करें, जो राधा के साथ कुंजों में विहार कर रहे हों। यह रूप गोपी के मन में प्रेम और रोमांच की भावना को जागृत कर सकता था। इस तरह, सखी ने गोपी से कृष्ण का ऐसा रूप धारण करने का आग्रह किया था जो उनकी मनोकामनाओं को पूरा कर सके और उनके जीवन में आनंद और उत्साह का संचार कर सके।
  5. आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
    उत्तर :
    रसखान का कृष्ण-प्रेम इतना गहरा है कि वह कृष्ण के सान्निध्य को हर रूप में पाना चाहते हैं। उनके लिए कृष्ण का हर रूप पूजनीय है, चाहे वह मानव रूप हो या प्राकृतिक रूप। ब्रजभूमि के पशु-पक्षी, पहाड़-पर्वत, उनके लिए कृष्ण की लीलाओं के साक्षी हैं। इन प्राकृतिक सौंदर्यों में भी उन्हें कृष्ण का दर्शन होता है। वे इन प्राकृतिक रूपों में भी कृष्ण को पाकर अपने आप को कृष्ण के चरणों में समर्पित करना चाहते हैं। अद्वैतवाद के सिद्धांत के अनुसार, आत्मा और परमात्मा एक ही हैं, इस विश्वास से प्रेरित होकर, वे मानते हैं कि हर जीव में परमात्मा का अंश निहित है। इस प्रकार, पशु-पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य पाकर, वे मोक्ष की कामना को पूरा करना चाहते हैं।
  6. चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?
    उत्तर :
    चौथे सवैये में गोपियाँ कृष्ण के सामने अपनी इच्छाशक्ति खो देती हैं। कृष्ण का रूप अत्यंत मोहक होता है। उनकी मुस्कान, उनकी आँखें, उनका समग्र व्यक्तित्व गोपियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। कृष्ण की मुरली की मधुर धुन भी गोपियों को मोहित कर लेती है। वे इस धुन को सुनकर अपने आप को नियंत्रित नहीं कर पाती हैं। कृष्ण के प्रेम में इतनी डूबी रहती हैं कि वे लोक-लाज का भूल जाती हैं। वे अपने घरों से निकलकर कृष्ण को ढूंढने निकल जाती हैं। इस प्रकार, कृष्ण का रूप और उनकी मुरली की धुन गोपियों को इतना प्रभावित करती है कि वे अपनी इच्छाशक्ति खो देती हैं और कृष्ण के प्रति आकर्षण में डूब जाती हैं।
    7.भाव स्पष्ट कीजिए-
    (क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।
    (ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
    उत्तर :
    (क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।
    अर्थ: मैं लाखों सोने के महलों और आरामदायक बगीचों को छोड़कर, कांटेदार झाड़ियों और घने जंगलों में जाने को तैयार हूं।
    भाव: कवि रसखान ब्रज की प्राकृतिक सुंदरता से इतने मोहित हैं कि वे मानव-निर्मित सुखों को त्यागने के लिए तैयार हैं। उनके लिए ब्रज की मिट्टी, कांटेदार झाड़ियाँ, घने जंगल सब कुछ प्रिय हैं। वे इन सबमें कृष्ण की लीलाओं के दर्शन करते हैं। यह पंक्ति कवि की कृष्ण-प्रेम की गहराई को दर्शाती है।
    (ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
    अर्थ: हे मेरी प्रिया! तेरे मुख की मुस्कान को मैं संभाल नहीं पाता, फिर संभाल नहीं पाता, फिर संभाल नहीं पाता।
    भाव: कवि यहां राधा से कह रहे हैं कि वे उनकी मुस्कान के मोह से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। राधा की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि कवि उसमें खो जाते हैं। यह पंक्ति राधा की सुंदरता और उनकी मुस्कान के प्रभाव को दर्शाती है।
  7. ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है?
    उत्तर :
    “कालिंदी कूल कदंब की डारन” में अनुप्रास अलंकार है।
    स्पष्टीकरण:
    अनुप्रास अलंकार: जब किसी वाक्य या पंक्ति में एक ही वर्ण या वर्ण समूह की आवृत्ति बार-बार होती है, तो उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
    उदाहरण में:
    “कालिंदी कूल कदंब की डारन” में ‘क’ वर्ण की बार-बार आवृत्ति हो रही है।
    “क” वर्ण की इस लगातार आवृत्ति के कारण वाक्य में एक लय और संगीत पैदा होता है जो कानों को सुहावना लगता है।
    9.काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
    या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
    उत्तर :
    “या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी” – इस पंक्ति में काव्य सौंदर्य का अद्भुत समावेश है। ‘म’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार का सृजन हुआ है, जो पंक्ति को संगीतमय बनाता है। ‘धरी’ और ‘धरौंगी’ शब्दों का प्रयोग भी पंक्ति में एक विशेष लय और भाव उत्पन्न करता है। गोपी की कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और ईर्ष्या का भाव इस पंक्ति में खूबसूरती से व्यक्त हुआ है। वह कृष्ण की मुरली से ईर्ष्या करती है क्योंकि मुरली ही कृष्ण के होंठों को छूती है। इस प्रकार, यह छोटी सी पंक्ति में अनुप्रास, भाव, और गहनता का अद्भुत समन्वय है जो इसे काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली बनाता है।
    रचना और अभिव्यक्ति
  8. प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए ।
    उत्तर :
    अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम
    हे मातृभूमि, तू मेरे हृदय की धड़कन,
    तू मेरी आन, तू मेरा जीवन।
    तेरी मिट्टी में खेला, तेरी गोद में सोया,
    तेरे आँचल में लिपटा, मैं बड़ा हुआ।

तेरे हर कण में बसती है मेरी आत्मा,
तेरे हर नदी में बहता है मेरा खून।
तेरे हर पर्वत की चोटी पर लहराता है मेरा झंडा,
तेरे हर नगर में गूँजता है मेरा गान।

तेरे लिए कुर्बान कर दूँ मैं अपना जीवन,
तेरी रक्षा के लिए लडूँगा मैं प्राण।
तू मेरी मां, तू मेरी बहन, तू मेरी जान,
तेरे चरणों में नमन, मेरी मातृभूमि।

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Dr. Upendra Kant Chaubey
Dr. Upendra Kant Chaubeyhttps://education85.com
Dr. Upendra Kant Chaubey, An exceptionally qualified educator, holds both a Master's and Ph.D. With a rich academic background, he brings extensive knowledge and expertise to the classroom, ensuring a rewarding and impactful learning experience for students.
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