कठपुतली

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कविता “कठपुतली” में कवि ने कठपुतलियों की व्यथा को दर्शाया है। ये कठपुतलियाँ धागों से बंधी होती हैं और दूसरों के इशारों पर नाचने को मजबूर होती हैं। उन्हें अपनी मर्जी से कुछ करने की आजादी नहीं होती। वे अपनी इस दशा से परेशान हैं और स्वतंत्रता की चाहत रखती हैं। अंत में एक कठपुतली विद्रोह करती है और धागे तोड़कर आजादी पाने का प्रयास करती है। 

कविता से

1. कठपुतली को गुस्सा क्यों आया ?

उत्तर :

कठपुतली को गुस्सा इसलिए आया क्योंकि वह दूसरों के इशारों पर नाचने को मजबूर थी। उसे अपनी मर्जी से कुछ करने की आजादी नहीं थी। वह धागों से बंधी हुई थी और उसे हर समय दूसरों के कहने पर ही कुछ करना पड़ता था। इसीलिए वह अपनी इस दशा से परेशान थी और स्वतंत्रता की चाहत रखती थी।

2. कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती ?

उत्तर :

कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा तो है, लेकिन वह धागों से बंधी हुई है। ये धागे उसे हर वक्त किसी और के इशारे पर नाचने पर मजबूर करते हैं।

3. पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी?

उत्तर :

पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को इसलिए अच्छी लगी क्योंकि उसने अपनी मन की बात सबके सामने रखी। उसने अपनी दशा पर रोना नहीं रोया, बल्कि उसने सभी को अपनी आजादी के लिए सोचने पर मजबूर किया। उसने दूसरी कठपुतलियों को यह एहसास कराया कि वे भी धागों से बंधी हुई हैं और उन्हें भी अपनी आजादी के लिए लड़ना चाहिए।

4. पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि-‘ ये धागे / क्यों हैं मेरे पीछे आगे? / इन्हें तोड़ दो; / मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो। ‘ – तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि -‘ ये कैसी इच्छा / मेरे मन में जगी?’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए-

• उसे दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगी ।

• उसे शीघ्र स्वतंत्र होने की चिंता होने लगी ।

• वह स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी।

• वह डर गई, क्योंकि उसकी उम्र कम थी।

उत्तर :

दूसरी कठपुतलियों की ज़िम्मेदारी महसूस होने लगी: उसने देखा कि सभी कठपुतलियाँ भी उसके जैसी ही हैं, वे भी आजादी चाहती हैं। उसने सोचा कि अगर उसने धागे तोड़े तो क्या बाकी कठपुतलियाँ भी ऐसा ही करेंगी? क्या वे सभी स्वतंत्र हो पाएंगी? इस जिम्मेदारी ने उसे डरा दिया।

स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी: एक बार धागे टूटने के बाद उसे स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए क्या करना होगा, इस बारे में सोचने लगी। उसे डर था कि कहीं वह स्वतंत्रता को संभाल न पाए।

स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी: उसने यह भी सोचा कि स्वतंत्रता के बाद क्या होगा? क्या उसे कोई नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा?

कविता से आगे

1. ‘बहुत दिन हुए / हमें अपने मन के छंद छुए । ‘ – इस पंक्ति का अर्थ और क्या हो सकता है? अगले पृष्ठ पर दिए हुए वाक्यों की सहायता से सोचिए और अर्थ लिखिए-

कठपुतली

(क) बहुत दिन हो गए, मन में कोई उमंग नहीं आई। (ख) बहुत दिन हो गए, मन के भीतर कविता-सी कोई बात नहीं उठी, जिसमें छंद हो, लय हो।

(ग) बहुत दिन हो गए गाने – गुनगुनाने का मन नहीं हुआ ।

(घ) बहुत दिन हो गए, मन का दुख दूर नहीं हुआ और न मन में खुशी आई। 

उत्तर :

कठपुतलियाँ बहुत समय से अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर पा रही हैं। वे दूसरों के इशारों पर नाचने को मजबूर हैं। इसीलिए उनके मन में कोई उमंग नहीं है, कोई खुशी नहीं है। वे अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाती हैं। वे बस एक मशीन की तरह काम कर रही हैं।

2. नीचे दो स्वतंत्रता आंदोलनों के वर्ष दिए गए हैं। इन दोनों आंदोलनों के दो-दो स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखिए-

(क) सन् 1857 (ख) सन् 1942

उत्तर :

सन् 1857:

  • मंगल पांडे: 1857 के विद्रोह के पहले शहीद।
  • तात्या टोपे: विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक।

सन् 1942:

  • महात्मा गांधी: भारत छोड़ो आंदोलन के नेता।
  • सुभाष चंद्र बोस: आजाद हिंद फौज के संस्थापक।

अनुमान और कल्पना

स्वतंत्र होने की लड़ाई कठपुतलियाँ कैसे लड़ी होंगी और स्वतंत्र होने के बाद स्वावलंबी होने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए होंगे? यदि उन्हें फिर से धागे में बाँधकर नचाने के प्रयास हुए होंगे तब उन्होंने अपनी रक्षा किस तरह के उपायों से की होगी?

उत्तर :

कठपुतलियां अपनी स्वतंत्रता के लिए धीरे-धीरे प्रयास करतीं, शायद धागों को कमजोर करके या एक साथ मिलकर उन्हें तोड़कर। स्वतंत्रता के बाद, उन्हें अपने पैरों पर खड़े रहना सीखना होता। अगर फिर से बंधने की कोशिश होती, तो वे छिपकर, एक-दूसरे की मदद से या लड़कर बचाव करतीं। यह कहानी हमें सिखाती है कि स्वतंत्रता की लड़ाई कितनी कठिन होती है और स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी आती है।

भाषा की बात

1. कई बार जब दो शब्द आपस में जुड़ते हैं तो उनके मूल रूप में परिवर्तन हो जाता है। कठपुतली शब्द में भी इस प्रकार का सामान्य परिवर्तनहुआ है। जब काठ और पुतली दो शब्द एक साथ हुए कठपुतली शब्द बन गया और इससे बोलने में सरलता आ गई। इस प्रकार के कुछ शब्द बनाइए- जैसे – काठ (कठ) से बना – कठगुलाब, कठफोड़ा 

हाथ- हथ      सोना-सोन      मिट्टी – मट

उत्तर :

हाथ से बने शब्द:

  • हथेली: हाथ का वह भाग जहां उंगलियां जुड़ी होती हैं।
  • हथकड़ी: हाथों में बांधने का एक औजार।
  • हथियार: लड़ाई में इस्तेमाल होने वाला कोई औजार।

सोना से बने शब्द:

  • सोनार: सोने के आभूषण बनाने वाला।
  • सोनपाती: सोने की पत्तियां बनाने वाला।
  • सोनगिरी: सोने की पहाड़ी (एक पौराणिक कथा के अनुसार)।

मिट्टी से बने शब्द:

  • मिट्टी का घड़ा: मिट्टी से बना हुआ एक बर्तन।
  • मिट्टी का तेल: मिट्टी के तेल का दीपक जलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • मिट्टी का घर: मिट्टी से बना हुआ घर।

2. कविता की भाषा में लय या तालमेल बनाने के लिए प्रचलित शब्दों और वाक्यों में बदलाव होता है। जैसे-आगे-पीछे अधिक प्रचलित शब्दों की जोड़ी है, लेकिन कविता में ‘पीछे-आगे’ का प्रयोग हुआ है। यहाँ ‘ आगे’ का ‘… बोली ये धागे’ से ध्वनि का तालमेल है। इस प्रकार के शब्दों की जोड़ियों में आप भी परिवर्तन कीजिए – दुबला-पतला, इधर-उधर, ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ, गोरा – काला, लाल-पीला आदि ।

उत्तर :

दुबला-पतला: “पतला-दुबला सा नजर आता है, मानो पतंग का धागा टूट गया हो।”

इधर-उधर: “उधर-इधर भागता हुआ सागर, मानो किसी की तलाश में हो।”

ऊपर-नीचे: “नीचे-ऊपर उछलता हुआ मन, मानो पंछी आसमान में उड़ रहा हो।”

दाएँ-बाएँ: “बाएँ-दाएँ देखता हुआ, वो खोया हुआ लग रहा था।”

गोरा-काला: “काला-गोरा रंग मिलाकर, प्रकृति ने एक नया रंग बनाया।”

लाल-पीला: “पीला-लाल रंगों से सजा हुआ आसमान, मानो कोई त्योहार हो।”