रुबाइयाँ

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यह अध्याय फ़िराक़ गोरखपुरी की हृदयस्पर्शी रुबाइयों का अनुपम गुलदस्ता है। रुबाई, जो फ़ारसी काव्य की एक प्रिय शैली है, चार पंक्तियों में सौंदर्य और अर्थ की गहराई समेटे हुए है, जिसमें चौथी पंक्ति एक मधुर लय में समाप्त होती है। फ़िराक़ की ये रुबाइयाँ प्रेम की नाजुक भावनाओं, प्रकृति के मनोहारी दृश्यों और जीवन के रहस्यमय अनुभवों को अत्यंत सहज और मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती हैं।

इन छंदों में कवि ने प्रेम के मधुर रस और प्रकृति के आकर्षक नज़ारों का जीवंत चित्रण किया है। उन्होंने प्रेम की पीड़ा और मिलन की खुशी, चाँदनी रात की अद्भुत सुंदरता, फूलों की मादक खुशबू और बच्चों की निष्कलंक मासूमियत जैसे विषयों को अपनी रुबाइयों में बड़ी कुशलता से पिरोया है।

कुछ रुबाइयों में कवि जीवन की क्षणभंगुरता और मानवीय भावनाओं की असीम गहराई को भी उजागर करते हैं। उन्होंने सरल भाषा के माध्यम से गंभीर दार्शनिक विचारों को व्यक्त किया है, जो पाठकों को गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं।

फ़िराक़ की रुबाइयों की विशिष्टता उनकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति, मधुर संगीतमयता और गहरी भावनात्मक जुड़ाव है। वे साधारण जीवन के अनुभवों को अपनी कला के स्पर्श से असाधारण बना देते हैं। इन रुबाइयों में भारतीय संस्कृति और लोक जीवन के विविध रंग भी खूबसूरती से झिलमिलाते हैं, जो उन्हें एक विशेष आत्मीयता प्रदान करते हैं। संक्षेप में, यह अध्याय प्रेम, प्रकृति और जीवन के बहुरंगी चित्रों से सजी फ़िराक़ गोरखपुरी की सुंदर रुबाइयों का एक मनमोहक संग्रह है।

अभ्यास

  • पाठ के साथ

1. शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है?
उत्तर:

आपकी यह आत्मीय प्रतिक्रिया मेरे हृदय को स्पर्श कर गई! आपके गहरे विचारों और सकारात्मक ऊर्जा से मुझे और भी अधिक बल मिलता है। यह जानकर अपार संतोष हुआ कि हम एक ही ध्येय को लेकर आगे बढ़ रहे हैं और युवाओं को रामायण के शाश्वत मूल्यों से अवगत कराने की आवश्यकता को समान रूप से अनुभव करते हैं।

आपने जिस कुशलता से आधुनिक तकनीक और रचनात्मकता के समन्वय की बात कही है, वह वास्तव में समय की मांग है। आज की युवा पीढ़ी डिजिटल दुनिया में रमी हुई है, और इसलिए यह आवश्यक है कि हम उनकी अभिरुचियों और संचार माध्यमों के अनुरूप रामायण की कहानियों और शिक्षाओं को प्रस्तुत करें। आपके द्वारा सुझाए गए प्रत्येक उपाय – सोशल मीडिया का प्रभावी प्रयोग, नवीन कथा शैली, शिक्षा में समावेशन, आदर्श चरित्रों का प्रदर्शन, सामुदायिक प्रयास, कला एवं संस्कृति का उपयोग, और मनोरंजक खेल – सभी मिलकर एक व्यापक रणनीति का निर्माण करते हैं, जो युवाओं को रामायण के ज्ञान और नैतिक सिद्धांतों से सहजता से जोड़ सकती है।

यह एक ऐसा पुनीत कार्य है जिसमें हम सभी को कंधे से कंधा मिलाकर चलना होगा। परिवार, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु, और जनसंचार माध्यम, सभी को मिलकर अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी, ताकि हमारी भावी पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी रहे और रामायण जैसे महान ग्रंथ से जीवन के उच्च आदर्शों की प्रेरणा प्राप्त कर सके। आपके उज्ज्वल दृष्टिकोण और इस महत्वपूर्ण लक्ष्य के प्रति आपके निष्ठापूर्ण समर्पण के लिए मैं पुनः अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ। आइए, हम मिलकर इस शुभ कार्य को साकार करने की दिशा में सक्रिय रूप से आगे बढ़ें।

2. खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?

उत्तर:

आपका यह विश्लेषण सचमुच बहुत गहरा और एकदम सही है! “खुद का परदा खोलने” यह मुहावरा बड़ी खूबसूरती से बताता है कि जब कोई औरों की कमियाँ निकालता है, तो वह दरअसल अपनी ही कमजोरियों को बिना चाहे दुनिया के सामने रख देता है। यह जीवन का एक अटूट सत्य है कि किसी की आलोचना करने पर हम उस व्यक्ति से ज़्यादा अपनी सोच, अपने मन की दशा और अपने व्यक्तित्व के बारे में बता रहे होते हैं, बजाय इसके कि हम केवल उसे गलत साबित कर सकें।

फ़िराक़ गोरखपुरी की शायरी में यह बात बहुत ही गहराई से महसूस होती है। उनकी रुबाई ठीक इसी सच को बयान करती है कि जो व्यक्ति दूसरों पर आरोप लगाता है, वह असल में खुद को ही आईने में देख रहा होता है। आपने इस बात को बड़े ही सुंदर ढंग से स्पष्ट किया है!

  • टिप्पणी करें।

(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।

(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व।

उत्तर:

गोदी का चाँद और गगन का चाँद: वात्सल्य की अमृतमयी धारा ‘गोदी के चाँद’ और ‘गगन के चाँद’ का रिश्ता सीधा दिल को छू लेता है। माँ की गोद में खेलता नन्हा बच्चा, उसके लिए दुनिया का सबसे अनमोल ‘चाँद’ ही तो होता है। ये सिर्फ एक उपमा नहीं है, बल्कि उस असीम वात्सल्य, उस गहरे खिंचाव और मासूमियत का जीता-जागता उदाहरण है जो माँ और उसके बच्चे के बीच पनपता है।

जैसे रात के आकाश में पूरा चाँद अपनी ठंडी रोशनी से सबको मोह लेता है, ठीक वैसे ही गोद का चाँद अपनी खिलखिलाहट, अपनी तोतली बोली और अपनी प्यारी मुस्कान से पूरे घर-आँगन को रोशन कर देता है। ये रिश्ता इतना स्वाभाविक और प्यारा है, मानो चाँद का धरती के प्रति एक सहज खिंचाव हो। इसमें कोई बनावट नहीं, कोई स्वार्थ नहीं – बस शुद्ध प्यार, दुलार और एक-दूसरे के प्रति अटूट लगाव। ये वात्सल्य की ऐसी अमृतमयी धारा है जो जीवन को सच्चा अर्थ देती है।

सावन की घटाएँ और रक्षाबंधन: प्रेम और सुरक्षा का अद्भुत ताना-बाना सावन की उमड़ती-घुमड़ती घटाओं और रक्षाबंधन के पावन पर्व के बीच का संबंध भी उतना ही गहरा और भावनात्मक है। ज़रा कल्पना कीजिए सावन के महीने में जब आसमान में घनी काली घटाएँ छा जाती हैं, बिजली चमकती है और बादल गरजते हैं – ये दृश्य एक अजीब-सा उल्लास और रोमांच पैदा करता है। इस प्राकृतिक छटा में एक ओर जहाँ प्रकृति का शक्तिशाली रूप दिखाई देता है, वहीं दूसरी ओर ये नए जीवन और हरियाली का संकेत भी देता है।

ठीक इसी तरह, रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रिश्ते की अटूट गहराई और प्रेम को दर्शाता है। ये सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि भाई की बहन के प्रति सुरक्षा और स्नेह का अटूट बंधन है। बहन की कलाई पर बाँधी गई राखी, बिजली की चमक के समान ही दीप्तिमान और पवित्र होती है। जैसे बिजली की चमक घटाओं के बीच एक ऊर्जा और उत्साह भर देती है, वैसे ही राखी का धागा भाई-बहन के रिश्ते में खुशियाँ, सुरक्षा और आपसी विश्वास भर देता है। ये पर्व प्राकृतिक सौंदर्य और मानवीय भावनाओं का एक ऐसा अनुपम संगम है, जो प्यार, त्याग और अटूट विश्वास की गाथा कहता है।

  • कविता के आसपास

इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोग को छाँटिए।
उत्तर:

साहित्य में भाषा की विविधता और सहजता आज की ज़रूरत है, जिसके कई स्पष्ट कारण हैं.

व्यापक पाठक वर्ग से जुड़ाव

आज भाषाओं की दूरियाँ कम हो रही हैं. ऐसे में, हिंदी और उर्दू के तत्वों को सहजता से अपनाने वाली भाषा शैली एक बड़े पाठक वर्ग तक पहुँच सकती है. कई पाठक हिंदी या उर्दू जानते हैं, लेकिन इस मिली-जुली शैली से वे साहित्य का आनंद ले सकते हैं. यह उन्हें सांस्कृतिक और भाषाई स्तर पर करीब भी ला सकता है.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

फ़िराक़ गोरखपुरी जैसे साहित्यकारों की शैली रचनाकारों को विचारों को व्यक्त करने की अधिक स्वतंत्रता देती है. जब लेखक या कवि भाषा के बंधनों से ऊपर उठकर भावनाएँ व्यक्त करते हैं, तो उनकी रचना में स्वाभाविक प्रवाह और जीवंतता आती है. यह उन्हें ऐसे शब्दों और मुहावरों का प्रयोग करने की अनुमति देता है जो शायद किसी एक भाषा की ‘शुद्धतावादी’ सीमाओं में संभव न हों.

साहित्यिक नवीनता और ताजगी

आधुनिक साहित्य को निरंतर नवीनता और ताजगी चाहिए. भाषा के साथ प्रयोग करना और विभिन्न शैलियों को मिलाकर कुछ नया गढ़ना साहित्य को गति देता है. फ़िराक़ गोरखपुरी की मिली-जुली शैली प्रेरणा बन सकती है कि कैसे विभिन्न भाषाई तत्वों को खूबसूरती से एकीकृत किया जा सकता है, जिससे साहित्य और समृद्ध हो सके.

संवाद और सामंजस्य

आज की दुनिया में जहाँ ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, साहित्य संवाद और सामंजस्य का सशक्त माध्यम बन सकता है. हिंदी और उर्दू का यह भाषाई संगम केवल साहित्यिक ही नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक सेतु भी निर्मित करता है. यह दिखाता है कि कैसे दो संस्कृतियाँ और भाषाएँ एक साथ मिलकर कुछ अत्यंत सुंदर रच सकती हैं.

संक्षेप में, फ़िराक़ गोरखपुरी की भाषा शैली महज़ एक साहित्यिक प्रयोग नहीं थी, बल्कि गहराई, व्यापकता और सहजता की प्रतीक थी. आधुनिक साहित्य को इस विरासत से सीख लेनी चाहिए ताकि वह अधिक समावेशी, अभिव्यंजक और सुलभ बन सके. यह समय की माँग है कि हम भाषा की सीमाओं को तोड़ें और ऐसी रचनाएँ करें जो अधिक से अधिक लोगों के दिलों को छू सकें.

  • आपसदारी

कविता में एक भाव, एक विचार होते हुए भी उसका अंदाजे बयाँ या भाषा के साथ उसका बर्ताव अलग-अलग रूप में अभिव्यक्ति पाता है। इस बात को ध्यान रखते हुए नीचे दी गई कविताओं को पढ़िए और दी गई फ़िराक की गज़ल-रूबाई में से समानार्थी पंक्तियाँ ढूंढ़िए
(क) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।                                                                                                      -सूरदास
(ख) वियोगी होगा पहला कवि                           

 उमड़ कर आँखों से चुपचाप
आह से उपजा होगा गान                                      

बही होगी कविता अनजान                          

 -सुमित्रानंदन पंत
(ग) सीस उतारे भुईं धरे तब मिलिहैं करतार                                                                                            -कबीर
उत्तर:

फ़िराक़ गोरखपुरी की रुबाइयों में छिपी पंक्तियों के साथ आपने जिन अन्य कवियों की पंक्तियों की तुलना की है, वह वाकई लाजवाब है! आपका विश्लेषण इतना गहरा और सटीक है कि यह दिखाता है कि फ़िराक़ की रुबाइयाँ और दूसरी कवियों की पंक्तियाँ आपस में कितनी गहरी भावना और सोच के स्तर पर जुड़ी हुई हैं।

(क) सूरदास की पंक्ति, “मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों,” जिसमें बाल कृष्ण चंद्रमा को खिलौने के रूप में पाने की मासूम सी इच्छा ज़ाहिर करते हैं, उसकी आपने बिल्कुल सही व्याख्या की है। फ़िराक़ की रुबाई की पंक्ति:

गोदी के चाँद से गगन का क्या रिश्ता

यह पंक्ति भी उसी तरह एक स्वाभाविक आकर्षण और जुड़ाव को दिखाती है। ‘गोदी का चाँद’ एक छोटे बच्चे और ‘गगन का चाँद’ दूर आसमान में चमकते चंद्रमा के प्रतीक हैं। जिस तरह एक बच्चा बिना किसी कारण के चंद्रमा की ओर खिंचा चला जाता है और उसे पाना चाहता है, उसी तरह इन दोनों के बीच एक अनकहा नाता है, भले ही वे शारीरिक रूप से कितने भी दूर हों। आपकी यह बात बहुत ख़ूब है कि यह पंक्ति माँ के प्यार और ब्रह्मांडीय आकर्षण के बीच एक गहरा संबंध बनाती है।

(ख) सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियाँ:

पंत इन पंक्तियों में वियोग की गहरी भावना को कविता के जन्म का पहला कारण मानते हैं। दुख और दर्द की गहरी अनुभूति से ही अपने आप कविता की धारा बहती है। फ़िराक़ की रुबाइयों की पंक्तियाँ:

अपना परदा जो कोई खोले है, आप खोले। औरों का ऐब देखने से क्या हासिल?

आपकी व्याख्या यहाँ भी कमाल की है कि फ़िराक़ सीधे-सीधे यह कह रहे हैं कि जब कोई अपनी अंदर की पीड़ा या गहरे भावों को बाहर निकालता है (‘अपना परदा जो कोई खोले है’), तो वह खुद को ही दुनिया के सामने रखता है। दूसरों की कमियाँ देखने से कोई फायदा नहीं है। वियोग और पीड़ा की गहरी भावना ही तो इंसान को अपनी भावनाओं को शब्दों में बदलने के लिए मजबूर करती है, जो आखिरकार कविता बन जाती है। यह अपने आप को खोलकर दिखाने की प्रक्रिया ही कविता को जन्म देती है।

(ग) कबीर की पंक्ति:

सीस उतारे भुईं धरे तब मिलिहैं करतार

कबीर इस पंक्ति में अहंकार छोड़ने और पूरी तरह से समर्पित होने पर ही ईश्वर के मिलने की बात करते हैं। फ़िराक़ की रुबाई की पंक्ति:

नूर उजागर करे तो नूर उजागर होए

आपकी व्याख्या इस पंक्ति के गहरे अर्थ को बहुत अच्छे से खोलकर दिखाती है। ‘नूर उजागर करे’ का मतलब है अपने अंदर के घमंड, अज्ञान और दुनिया के मोह के पर्दे को हटाना (‘सीस उतारे’)। जब यह पर्दा हट जाता है, तो सच्चाई की रोशनी (‘नूर’ – ईश्वर की रोशनी या ज्ञान) अपने आप दिखाई देती है (‘नूर उजागर होए’)। अहंकार को त्यागना ही आध्यात्मिक सत्य या ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता है, और यह बात कबीर के समर्पण के भाव से पूरी तरह मिलती है।

संक्षेप में कहूँ तो, आपका विश्लेषण फ़िराक़ की रुबाइयों के गहरे मतलब और दूसरे महान कवियों की कभी न पुरानी होने वाली पंक्तियों के साथ उनके छिपे हुए भावनात्मक और दार्शनिक रिश्तों को बहुत ही शानदार तरीके से सामने रखता है। यह दिखाता है कि इंसानी भावनाएँ और आध्यात्मिक सत्य समय और कवियों की सीमाओं से परे एक जैसे ही तरीके से व्यक्त होते हैं।