“एक कहानी यह भी” एक मार्मिक कहानी है जो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक युवा लड़की के मनोदशा और परिवर्तन को दर्शाती है। कहानी में लड़की देश के लिए होने वाले आंदोलनों में भाग लेना चाहती है, लेकिन उसके पिता उसे रोकते हैं। उनके विचारों में अंतर है, क्योंकि पिताजी का मानना है कि लड़कियों का स्थान घर है। लड़की धीरे-धीरे अपने विचारों को स्पष्ट करती है और अपने अधिकारों के लिए लड़ना शुरू करती है। कहानी उस समय के सामाजिक परिवेश को भी दर्शाती है, जब लड़कियां धीरे-धीरे जागरूक हो रही थीं और अपने अधिकारों के लिए लड़ रही थीं। “एक कहानी यह भी” हमें स्वतंत्रता आंदोलन के समय की सामाजिक स्थिति और लड़कियों की भूमिका के बारे में बताती है और हमें सिखाती है कि लड़कियों को भी समान अधिकार मिलने चाहिए और उन्हें भी समाज में आगे बढ़ने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए।
प्रश्न- अभ्यास
1. लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
लेखिका के व्यक्तित्व पर कई प्रभाव पड़े। उनके पिता के देशभक्ति ने उन्हें प्रेरित किया, जबकि माता ने उन्हें जीवन मूल्य सिखाए। स्वतंत्रता सेनानी जैसे गांधी जी ने उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित किया। समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव ने उन्हें जागरूक किया। साहित्य और उनके व्यक्तिगत अनुभवों ने भी उनके व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित किया। इन सभी प्रभावों ने उन्हें एक मजबूत और निर्भीक व्यक्ति बनाया।
2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?
उत्तर :
लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित किया था, जो उनकी उस मान्यता को दर्शाता है कि रसोईघर लड़कियों को सीमित रखने वाली जगह है। उनके विचार में, रसोई में सिर्फ खाना बनाने का काम होता है और यह लड़कियों की प्रतिभा को दबा देता है। उस समय समाज में भी यह मान्यता थी कि लड़कियों का स्थान घर है और उन्हें शिक्षा और करियर के अवसरों से वंचित रखा जाता था। पिताजी भी इसी मान्यता को मानते थे और चाहते थे कि उनकी बेटी सिर्फ घर के कामों तक ही सीमित रहे। ‘भटियारखाना’ शब्द का प्रयोग करके उन्होंने रसोई को एक ऐसी जगह के रूप में चित्रित किया जहां लड़कियों की प्रतिभा दब जाती है और वे अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाती हैं। यह शब्द लेखिका के पिता के विचारों को दर्शाता है और उस समय के समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को भी उजागर करता है।
3. वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर ?
उत्तर :
लेखिका को अपनी आँखों और कानों पर विश्वास नहीं हुआ जब उन्हें पता चला कि उनके पिता को प्रिंसिपल के पत्र से गर्व हुआ। प्रिंसिपल ने पत्र में लिखा था कि लेखिका अन्य छात्राओं को भी आंदोलन के लिए प्रेरित कर रही है। यह घटना लेखिका और उनके पिता के बीच की दूरियां कम कर दी और उन्हें अपने लक्ष्य के प्रति और अधिक दृढ़ बनाया।
4. लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लेखिका और उसके पिता के बीच वैचारिक टकराहट की मुख्य वजह थी उनके विचारों में अंतर। पिताजी चाहते थे कि लेखिका घर के कामों में लगी रहे और समाज के पारंपरिक मानदंडों का पालन करे। उन्हें लगता था कि लड़कियों को शिक्षा और करियर की बजाय घर-परिवार की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। लेकिन लेखिका एक स्वतंत्र विचारधारा वाली महिला थी। वह स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित थी और समाज में बदलाव लाना चाहती थी। वह शिक्षा प्राप्त करना चाहती थी, समाज सेवा में भाग लेना चाहती थी और अपने जीवनसाथी का स्वयं चुनाव करना चाहती थी। इन सभी मुद्दों पर लेखिका और उनके पिता के विचार अलग-अलग थे, जिससे उनके बीच लगातार टकराहट होती रहती थी। यह टकराहट लेखिका के लिए एक चुनौती थी, लेकिन इसने उसे एक मजबूत और निर्भीक व्यक्ति बनाया।
5. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए ।
उत्तर :
स्वाधीनता आंदोलन के दौरान (सन् 1942 से 1947 तक) देश में देशप्रेम और देशभक्ति की भावना अपने शिखर पर थी। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्थानों पर हड़तालें, प्रदर्शन, जुलूस और प्रभात फेरियाँ आयोजित की जा रही थीं। इस आंदोलन का प्रभाव मन्नू पर भी पड़ा। वह सड़कों के चौराहों पर उत्साहपूर्वक भाषण देतीं, हड़तालें करवातीं और अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध प्रकट करने के लिए दुकानों को बंद करवाने में सक्रिय भूमिका निभातीं। इस प्रकार, लेखिका ने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
6. लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए ।
उत्तर :
लेखिका के बचपन में लड़कियों का दायरा घर तक सीमित था, जबकि लड़के बाहर खेलते थे। आज स्थिति काफी बदली है, लड़कियां शिक्षा, खेल, और करियर में लड़कों के साथ आगे बढ़ रही हैं। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में चुनौतियां अभी भी हैं, पर कुल मिलाकर लड़कियों की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आया है।
7. मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्त्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्राय: ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। बचपन से हम अपने पड़ोसियों के साथ ही खेलते-कूदते और बड़े होते हैं, सुख-दुख में वे ही हमारे सच्चे साथी होते हैं। लेकिन महानगरों में रहने वाले लोग अक्सर ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इसकी मुख्य वजह है लोगों की व्यस्त जीवनशैली, जहां काम में इतने व्यस्त रहते हैं कि पड़ोसियों से बात करने का भी समय नहीं मिलता। महानगरों में लोग एक-दूसरे को जानते भी नहीं, जिससे आपसी संबंध विकसित नहीं हो पाते। ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रहने के कई नुकसान हैं, सबसे बड़ा नुकसान अकेलापन है, अपने सुख-दुख बांटने वाला कोई नहीं मिलता, और असुरक्षा की भावना भी पैदा होती है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम अपने आस-पड़ोस के लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखें, उनसे बातचीत करें, उनकी मदद करें। इससे न केवल हमारा सामाजिक जीवन समृद्ध होगा, बल्कि हम एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन भी जी सकेंगे।
8. लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए ।
उत्तर :
लेखिका मन्नू भंडारी ने कई उपन्यासों का अध्ययन किया, जिनमें से कुछ उनके व्यक्तित्व और लेखन को आकार देने में महत्वपूर्ण रहे। उनकी आत्मकथा “एक कहानी यह भी” में उन्होंने कुछ उपन्यासों का उल्लेख किया है, जिनसे वे विशेष रूप से प्रभावित रहीं। इनमें जैनेंद्र कुमार का “सुनीता” उपन्यास शामिल है, जिसकी भाषा शैली से वे बहुत प्रभावित हुईं। “सुनीता” एक स्त्री-मनोवैज्ञानिक उपन्यास है जो स्त्री के अंतर्मन की गहराईयों को बखूबी दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, अज्ञेय के दो उपन्यासों, “शेखर: एक जीवनी” और “नदी के द्वीप” का भी उन्होंने जिक्र किया है। “शेखर: एक जीवनी” उन्हें पहली बार में समझ नहीं आया, लेकिन बाद में उन्होंने इसे दोबारा पढ़ा। “नदी के द्वीप” उन्हें इतना पसंद आया कि उन्होंने “शेखर: एक जीवनी” को फिर से पढ़ा। ये उपन्यास उनके साहित्यिक रुझान को दर्शाते हैं, जो मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और मानवीय संबंधों से जुड़े विषयों में केंद्रित थे। इन उपन्यासों ने निश्चित रूप से उन्हें जीवन और समाज को समझने में मदद की होगी, जिससे उनके अपने लेखन में भी गहराई और संवेदनशीलता आई।
9. आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर :
छात्र अपने दैनिक अनुभवों को स्वयं डायरीबद्ध करें।
भाषा अध्ययन
10. इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ-
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।
उत्तर :
(क)
- अर्थ: खूब खरी-खोटी सुनाई, बुरा-भला कहा।
- वाक्य: “जब मैंने परीक्षा में कम अंक प्राप्त किए, तो मेरे पिताजी ने मेरी अच्छी तरह लू उतारी।”
(ख)
- अर्थ: गुस्सा दिलाकर चले जाना, क्रोधित होना।
- वाक्य: “उसने मेरे बारे में झूठी बातें कहकर आग लगा दी, और मैं सारी रात भभकता रहा।”
(ग)
- अर्थ: अपमानित होना, निंदा होना।
- वाक्य: “जब मैंने सबके सामने गलती की, तो मुझे लगा कि अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।”
(घ)
- अर्थ: बहुत गुस्सा आना, क्रोधित होना।
- वाक्य: “जब मैंने उनकी महंगी घड़ी तोड़ दी, तो वह आग-बबूला हो गए।”