Tuesday, February 4, 2025

प्रेमचंद के फटे जूते 

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प्रेमचंद के फटे जूते यह पाठ एक प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर लेखक की भावनाओं और विचारों को व्यक्त करता है। लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर आश्चर्यचकित होता है और सोचता है कि एक महान लेखक के जूते इतने फटे हुए क्यों हैं।

लेखक प्रेमचंद के जूते की तुलना अपने जूते से करता है और पाता है कि प्रेमचंद के जूते में एक बड़ा छेद है जिससे उनकी अंगुली बाहर निकल आती है, जबकि उसका जूता ऊपर से तो अच्छा लगता है लेकिन अंदर से फटा हुआ है।

लेखक को यह समझ आता है कि प्रेमचंद के जूते इसलिए फटे हैं क्योंकि उन्होंने जीवन भर सच्चाई के लिए संघर्ष किया है। उन्होंने हमेशा समाज के गरीब और पीड़ित लोगों की आवाज उठाई है। इसीलिए उनके जूते सड़कों पर घिसटते हुए फट गए हैं।

लेखक प्रेमचंद के जीवन से प्रेरणा लेता है और सोचता है कि हमें भी सच्चाई के लिए लड़ना चाहिए और समाज के लिए कुछ करना चाहिए।

प्रश्न- अभ्यास

1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?

उत्तर :

  • सादगी: प्रेमचंद का जीवन बेहद सादा था। वे दिखावे से कोसों दूर रहते थे और एक सामान्य व्यक्ति की तरह ही जीवन जीते थे। उनके फटे जूते इसी बात का प्रमाण हैं।
  • स्वाभिमान: प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। वे किसी भी प्रकार के दिखावे को पसंद नहीं करते थे और अपनी पहचान को हमेशा बनाए रखते थे।
  • समाज सेवा: प्रेमचंद का दिल समाज सेवा के लिए धड़कता था। वे हमेशा समाज के कमजोर वर्गों की आवाज उठाते थे और उनके हितों के लिए लड़ते थे।
  • सच्चाई के प्रति निष्ठा: प्रेमचंद सच्चाई के प्रति अत्यंत निष्ठावान थे। वे अपने लेखन के माध्यम से हमेशा सच्चाई को उजागर करते थे।
  • हास्य: प्रेमचंद के लेखन में हास्य का पुट भी देखने को मिलता है। वे अपनी कहानियों के माध्यम से समाज की बुराइयों पर व्यंग्य करते थे।

2. सही कथन के सामने ( ) का निशान लगाइए-

(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।

(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।

(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।

(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ? 

उत्तर :  (क)

 3. नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-

(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।

(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।

(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?

उत्तर :

क) व्यंग्य: यह पंक्ति आधुनिक समाज में बढ़ते हुए भौतिकवाद और दिखावे पर व्यंग्य करती है। पहले जूते की कीमत टोपी से कम होती थी, लेकिन अब जूते की कीमत इतनी बढ़ गई है कि कई टोपियों की कीमत एक जूते के बराबर हो गई है। यह व्यंग्य यह दर्शाता है कि लोग अब दिखावे पर इतना पैसा खर्च करने लगे हैं कि उनकी मूल जरूरतें भी प्रभावित हो रही हैं।

ख) व्यंग्य: यह पंक्ति समाज में व्याप्त पाखंड और ढोंग पर व्यंग्य करती है। ‘परदा’ का मतलब यहां दिखावा या छल करना है। लेखक कह रहा है कि लोग सच्चाई को छिपाने के लिए बहुत कुछ करने को तैयार रहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़े।

ग) व्यंग्य: यह पंक्ति उन लोगों पर व्यंग्य करती है जो दूसरों को नीचा दिखाना चाहते हैं। ऐसे लोग अक्सर दूसरों के प्रति घृणा का भाव रखते हैं और उन्हें नीचा दिखाने के लिए छोटे-छोटे तरीके ढूंढते रहते हैं। लेखक यहां कह रहा है कि ऐसे लोग इतने घृणित हैं कि वे दूसरों को इशारे से भी नीचा दिखाने से नहीं चूकते।

4. पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?

उत्तर :

लेखक प्रारंभ में सोचता है कि प्रेमचंद ने फोटो खिंचवाने के लिए जान-बूझकर फटे जूते पहने होंगे, क्योंकि उनके पास शायद अन्य अच्छे जूते नहीं थे। हालांकि, तुरंत ही वह अपने इस विचार से बदल जाता है।

लेखक को लगता है कि प्रेमचंद दिखावे से कोसों दूर रहने वाले व्यक्ति थे। वे सादगीपूर्ण जीवन जीते थे और उनकी प्राथमिकता साहित्य और समाज सेवा थी, न कि व्यक्तिगत दिखावा। उनके लिए विचारों और लेखन का महत्व धन-दौलत से कहीं अधिक था। इसलिए, उन्होंने शायद फोटो खिंचवाने के लिए विशेष रूप से तैयार होने की आवश्यकता नहीं समझी।

इस प्रकार, लेखक का विचार बदलना प्रेमचंद की सादगी, समाज सेवा के प्रति समर्पण और दिखावे से दूर रहने के उनके दृष्टिकोण को दर्शाता है।

5. आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन सी बातें आकर्षित करती हैं? 

उत्तर :

लेखक का व्यंग्यात्मक अंदाज: लेखक ने व्यंग्य को कैसे प्रस्तुत किया है, उसकी भाषा कितनी तीक्ष्ण है, और उसने अपने विचारों को कितनी प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है।

सामाजिक मुद्दों पर लेखक का दृष्टिकोण: लेखक ने किस सामाजिक मुद्दे पर व्यंग्य किया है, और उसने इस मुद्दे को कितनी गहराई से समझा है।

लेखक की हास्य बोध: लेखक ने अपने व्यंग्य को कितना हास्यपूर्ण बनाया है, और इस हास्य के माध्यम से उसने पाठक को क्या संदेश देने की कोशिश की है।

लेखक की भाषा और शैली: लेखक ने किस तरह की भाषा का प्रयोग किया है, और उसकी शैली कितनी प्रभावशाली है।

6. पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?

उत्तर :

‘टीले’ शब्द का प्रयोग पाठ में एक बहुआयामी प्रतीक के रूप में किया गया है जो सामाजिक बुराइयों, कठिनाइयों, असमानता और व्यक्तिगत संघर्षों को दर्शाता है।

रचना और अभिव्यक्ति

7. प्रेमचंद के जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए ।

उत्तर :

कितने अजीब हैं ये नौजवान! कल ही तो मैंने मोहन को देखा था, जींस की इतनी टाइट पैंट पहनी थी कि लग रहा था जैसे उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही हो। और टी-शर्ट तो ऐसी थी मानो किसी ने रंगों का बर्तन उस पर उलट दिया हो। पैरों में इतने बड़े जूते थे कि लग रहा था जैसे वह किसी बच्चे के खिलौने पहन रहा हो।

मुझे याद है, जब मैं उसकी उम्र का था, तब हम पुराने कपड़े भी बड़े चाव से पहनते थे। लेकिन आज के युवाओं को तो हर हफ्ते नया फैशन चाहिए। वे नहीं समझते कि कपड़े सिर्फ शरीर को ढकने के लिए होते हैं, दिखावे के लिए नहीं।

मैं सोचता हूं कि शायद ये नौजवान प्रेमचंद जी को देखकर कुछ सीख सकते हैं। प्रेमचंद जी के फटे जूते भी एक कहानी बयान करते हैं। वे बताते हैं कि एक सच्चा लेखक को अपने काम पर ध्यान देना चाहिए, दिखावे पर नहीं।

8. आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?

उत्तर :

आजकल वेश-भूषा का महत्व काफी बढ़ गया है। यह अब सिर्फ शरीर को ढकने का साधन नहीं रहा, बल्कि व्यक्तिगत अभिव्यक्ति, सामाजिक दर्जा और जीवनशैली का प्रतीक बन गया है। फैशन ट्रेंड्स का प्रभाव बहुत व्यापक है, और लोग अक्सर ब्रांडेड कपड़ों को महत्व देते हैं, जिससे सामग्रीवाद को बढ़ावा मिलता है। सोशल मीडिया ने भी इस प्रवृत्ति को और तीव्र कर दिया है, जहां लोग इन्फ्लुएंसर्स और सेलिब्रिटीज की नकल करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, इस परिवर्तन के सकारात्मक पहलू भी हैं, जैसे व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को बढ़ावा मिलना और फैशन इंडस्ट्री का विकास।

लेकिन, इस बदलते परिदृश्य में, हमें यह भी ध्यान रखना है कि वेश-भूषा का मूल उद्देश्य शरीर को ढकना और सुरक्षा प्रदान करना है। हमें दिखावे के चक्कर में खुद को खोना नहीं चाहिए और अपने मूल्यों को भी महत्व देना चाहिए।

भाषा – अध्ययन

9. पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।

जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है: इसका अर्थ है कि आजकल लोग दिखावे पर अधिक ध्यान देते हैं। उदाहरण: “आजकल के युवाओं के लिए जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है, वे महंगे ब्रांड्स के कपड़े पहनने में फख्र महसूस करते हैं।”

अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं: इसका अर्थ है कि लोग दिखावे के लिए बहुत कुछ कुर्बान कर देते हैं। उदाहरण: “वह एक महंगी कार खरीदने के लिए अपनी सारी बचत न्योछावर कर रहा है, मानो जूते की कीमत और बढ़ गई हो।”

जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो? इसका अर्थ है कि लोग अक्सर दूसरों की कमजोरियों पर हंसते हैं। उदाहरण: “वह हमेशा दूसरों की गलतियों पर हंसता है, मानो जिसे वह घृणित समझता हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करता हो।”

10. प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए ।

उत्तर :

सादा: प्रेमचंद को एक सादा जीवन जीने वाला व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। वे दिखावे से दूर रहते थे और सरल जीवन जीने में विश्वास रखते थे।

संघर्षशील: प्रेमचंद को एक संघर्षशील लेखक के रूप में दिखाया गया है। उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

साहित्यप्रेमी: प्रेमचंद को एक सच्चे साहित्यप्रेमी के रूप में दिखाया गया है। वे साहित्य के प्रति समर्पित थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन साहित्य को समर्पित कर दिया।

स्वाभिमानी: प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। वे किसी से कुछ मांगने में संकोच नहीं करते थे, लेकिन साथ ही वे किसी पर आश्रित भी नहीं रहना चाहते थे।

समाजसेवी: प्रेमचंद समाज सेवा के प्रति समर्पित थे। वे समाज के कमजोर वर्गों की आवाज उठाते थे।

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Dr. Upendra Kant Chaubey
Dr. Upendra Kant Chaubeyhttps://education85.com
Dr. Upendra Kant Chaubey, An exceptionally qualified educator, holds both a Master's and Ph.D. With a rich academic background, he brings extensive knowledge and expertise to the classroom, ensuring a rewarding and impactful learning experience for students.
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