“लखनवी अंदाज़” कहानी में यशपाल ने लखनऊ के नवाब साहब के जीवन को व्यंग्य के माध्यम से चित्रित किया है। नवाब साहब एक ऐसे व्यक्ति थे जो दिखावे और दिखावे की दुनिया में जीते थे। कहानी में नवाब साहब खीरे को खाने की एक साधारण सी क्रिया को भी एक जटिल रस्म में बदल देते हैं, जो उनके दिखावेपूर्ण जीवन का प्रतीक है। कहानी लखनऊ के उच्च वर्ग के लोगों की आलोचना करती है जो दिखावे की दुनिया में जीते हैं और अपने वास्तविक जीवन से दूर हो गए हैं। “लखनवी अंदाज़” एक महत्वपूर्ण कहानी है जो हमें सिखाती है कि सच्चा सुख दिखावे में नहीं, बल्कि वास्तविकता में निहित है।
प्रश्न- अभ्यास
1. लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर :
लेखक को नवाब साहब के हाव-भावों से स्पष्ट हो गया कि वे उनसे बातचीत करने के लिए उत्सुक नहीं हैं। नवाब साहब के चेहरे पर उदासीनता और असंतोष साफ झलक रहा था। ऐसा लग रहा था कि लेखक के आने से उनका एकांत भंग हो गया है। नवाब साहब अपने आप को बहुत बड़ा व्यक्ति समझते थे और वे किसी से बात करने में संकोच नहीं करते थे, लेकिन लेखक के साथ ऐसा नहीं था। वे खीरे को काटने और सजाने में इतने मशगूल थे कि उन्हें लेखक की उपस्थिति का एहसास ही नहीं हुआ। नवाब साहब ने लेखक को खीरे खाने के लिए आमंत्रित नहीं किया और उनके सवालों का जवाब देने में आनाकानी की। इन सभी संकेतों से यह स्पष्ट होता है कि नवाब साहब लेखक से बातचीत करने में रुचि नहीं रखते थे।
2 नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक मिर्च बुरका, अंतत: सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है ?
उत्तर :
नवाब साहब ने खीरे को काटने, नमक-मिर्च बुरकने और फिर उसे सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया, जो एक अजीबोगरीब व्यवहार था। ऐसा करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। हो सकता है कि वे खाने की हर छोटी-बड़ी चीज को एक अनुष्ठान में बदलने का आनंद लेते हों, या फिर वे अपने आसपास के लोगों को प्रभावित करना चाहते हों। यह भी संभव है कि वे अपने जीवन से असंतुष्ट हों और इस तरह के व्यवहार से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हों। नवाब साहब का यह व्यवहार उनके अहंकार, दिखावे और शायद किसी मानसिक असंतुलन को भी दर्शाता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें दिखावे के पीछे छिपे सच को समझना चाहिए और साधारण जीवन जीना चाहिए।
3. बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर :
यशपाल का यह विचार कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी नहीं लिखी जा सकती, बिल्कुल सही है। कहानी के ये तीनों तत्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनके बिना कहानी का निर्माण संभव नहीं है। विचार कहानी का आधार होता है, घटनाएं कहानी को आगे बढ़ाती हैं और पात्र कहानी को जीवंत बनाते हैं। बिना इन तत्वों के कोई भी कहानी अधूरी और बेमानी होगी। उदाहरण के लिए, एक कहानी में किसी लड़के के कुत्ते के खो जाने की घटना हो सकती है, जिसके पीछे विचार कुत्ते के साथ भावनात्मक जुड़ाव और उसके खो जाने का दुःख हो सकता है। इन घटनाओं को आगे बढ़ाने के लिए लड़का कुत्ते को ढूंढने के लिए शहर में भटकता है, लोगों से पूछताछ करता है और अंत में उसे अपना कुत्ता मिल जाता है। ये सभी घटनाएं पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत होती हैं। इस प्रकार, विचार, घटना और पात्र कहानी के अभिन्न अंग हैं और इनके बिना कहानी का निर्माण संभव नहीं है।
4. आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर :
दिखावे का खेल: यह शीर्षक कहानी के मुख्य विषय को स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि नवाब साहब का पूरा जीवन दिखावे पर आधारित है।
खीरे की कहानी: यह शीर्षक कहानी की मुख्य घटना को दर्शाता है और पाठक को कहानी के बारे में उत्सुक बनाता है।
नवाबी अटपटाहट: यह शीर्षक नवाब साहब के अजीबोगरीब व्यवहार को दर्शाता है।
शान का बोझ: यह शीर्षक नवाब साहब के जीवन पर शान और दिखावे के बोझ को दर्शाता है।
खोया हुआ समय: यह शीर्षक नवाब साहब द्वारा व्यर्थ में गंवाए गए समय को दर्शाता है।
रचना और अभिव्यक्ति
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए ।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर :
(क) खीरे का रसास्वादन:
नवाब साहब के लिए खीरा खाना एक साधारण क्रिया नहीं थी, बल्कि एक कलात्मक अनुष्ठान था। उन्होंने खीरे को एक विशेष प्रकार की सावधानी से तैयार किया। सबसे पहले, उन्होंने एकदम ताजा और चमकदार खीरे का चयन किया। फिर, उन्होंने इसे सावधानीपूर्वक धोया और एक-एक करके छील लिया, मानो कोई बहुमूल्य रत्न हो। छिलके को भी उन्होंने बड़े ध्यान से हटाया, ताकि खीरे का कोई भी हिस्सा बर्बाद न हो। इसके बाद, उन्होंने खीरे को पतले-पतले टुकड़ों में काटा, प्रत्येक टुकड़े को समान आकार देने का ध्यान रखते हुए। उन्होंने इन टुकड़ों को एक खूबसूरत प्लेट में व्यवस्थित किया, मानो कोई कलाकृति सजा रहे हों। फिर, उन्होंने नमक, मिर्च, और अन्य मसालों को सावधानीपूर्वक छिड़का, प्रत्येक मसाले का स्वाद और मात्रा का ध्यान रखते हुए। अंत में, उन्होंने खीरे को अपने हाथ में उठाया, उसे सूंघा, और प्रत्येक टुकड़े का स्वाद लेते हुए धीरे-धीरे खाया, मानो किसी अमृत का आस्वादन कर रहे हों। यह पूरा प्रक्रिया नवाब साहब के दिखावे और अहंकार को दर्शाती है।
(ख) रसास्वादन की मेरी तैयारी:
मेरे लिए, चाय पीने का अनुभव एक विशेष प्रकार की रसास्वादन की क्रिया है। मैं इसे एक साधारण पेय नहीं मानता, बल्कि एक अनुष्ठान के रूप में देखता हूं। सबसे पहले, मैं अच्छी गुणवत्ता वाली चाय का चयन करता हूं, जिसमें ताज़गी और सुगंध हो। फिर, मैं पानी को उबालने के लिए मिट्टी के गिलास का उपयोग करता हूं, क्योंकि इससे चाय का स्वाद और भी बेहतर होता है। उबलते पानी में चाय की पत्तियाँ डालने के बाद, मैं उन्हें कुछ देर के लिए भिगोने देता हूं, ताकि चाय का सार पानी में अच्छी तरह से मिल जाए। फिर, मैं दूध और चीनी मिलाता हूं, और चाय को एक खूबसूरत कप में डालता हूं। मैं चाय को धीरे-धीरे पीता हूं, उसके स्वाद और सुगंध का आनंद लेता हूं। मेरे लिए, चाय पीना एक ऐसा अनुभव है जिसमें मैं पूरी तरह से डूब जाता हूं, और इसके प्रत्येक घूंट का आनंद लेता हूं।
6. खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा- सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर :
नवाब साहब का खीरे के साथ किया गया व्यवहार उनकी सनक का एक बेहतरीन उदाहरण है। इतिहास में कई नवाबों के ऐसे ही अजीबोगरीब शौक और सनकें देखने को मिलती हैं।
आवध के नवाब वाजिद अली शाह एक ऐसे ही नवाब थे, जो अपने अनेक शौक और विलासिता के लिए जाने जाते थे। वे संगीत, नृत्य, कठपुतली के शौकीन थे और उनके पास एक विशाल चिड़ियाघर भी था।
- कठपुतली का शौक: नवाब वाजिद अली शाह को कठपुतलियों से बहुत लगाव था। उन्होंने अपने महल में एक विशाल कठपुतली थिएटर बनवाया था, जहां विभिन्न प्रकार के कठपुतली नाटक खेले जाते थे।
- संगीत और नृत्य का शौक: वे एक कुशल संगीतकार और नर्तक भी थे। उन्होंने कई तरह के वाद्य यंत्र बजाना सीखा था और खुद भी कई रचनाएं की थीं।
- खाने-पीने का शौक: नवाब वाजिद अली शाह को खाने-पीने का बहुत शौक था। उनके रसोईघर में दुनिया भर के खाने बनाए जाते थे। वे अक्सर भोज आयोजित करते थे, जिनमें कई तरह के व्यंजन परोसे जाते थे।
- पशुओं का शौक: उन्हें घोड़ों, हाथियों और अन्य जानवरों से बहुत लगाव था। उनके पास एक विशाल चिड़ियाघर भी था।
- इत्र और सुगंध का शौक: वे विभिन्न प्रकार के इत्रों और सुगंधों का इस्तेमाल करते थे। उनके महल में हमेशा सुगंधित फूलों और मशालों की महक आती थी।
7. क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर :
सनक हमेशा नकारात्मक नहीं होती है। यह व्यक्ति के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि वह अपनी सनक का उपयोग किस तरह करता है। यदि किसी व्यक्ति की सनक सकारात्मक है तो वह उसे सफलता की ओर ले जा सकती है और समाज के लिए भी लाभदायक हो सकती है।
8. निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छाँटकर क्रिया-भेद भी लिखिए-
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला |
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा ।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर :
(क) एक सफ़ेदपोश सज्जन बैठे थे। (कर्तृवाच्य)
- क्रिया: बैठे थे
- भेद: कर्तृवाच्य (क्योंकि क्रिया का फल सज्जन पर पड़ रहा है)
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। (कर्मवाच्य)
- क्रिया: दिखाया
- भेद: कर्मवाच्य (क्योंकि उत्साह दिखाना एक क्रिया है जो संगति पर हो रही है)
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। (भाववाच्य)
- क्रिया: करते रहने की
- भेद: भाववाच्य (क्योंकि यहां क्रिया के भाव को ही मुख्य रूप से बताया जा रहा है)
(घ) अकेले सफ़र का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे। (कर्मवाच्य)
- क्रिया: खरीदे होंगे
- भेद: कर्मवाच्य (क्योंकि खीरे खरीदना एक क्रिया है जो खीरे पर हो रही है)
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। (कर्मवाच्य)
- क्रिया: काटे, निकाला
- भेद: कर्मवाच्य (क्योंकि दोनों क्रियाओं का फल खीरों पर पड़ रहा है)
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फाँकों की ओर देखा। (कर्मवाच्य)
- क्रिया: देखा
- भेद: कर्मवाच्य (क्योंकि देखा जाना एक क्रिया है जो खीरे की फाँकों पर हो रही है)
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। (कर्मवाच्य)
- क्रिया: लेट गए
- भेद: कर्मवाच्य (क्योंकि लेट जाना एक क्रिया है जो नवाब साहब पर हो रही है)
(ज) जेब से चाकू निकाला। (कर्मवाच्य)
- क्रिया: निकाला
- भेद: कर्मवाच्य (क्योंकि चाकू निकालना एक क्रिया है जो चाकू पर हो रही है)
पाठेतर सक्रियता
‘किबला शौक फरमाएँ’, ‘ आदाब- अर्ज… शौक फरमाएँगे’ जैसे कथन शिष्टाचार से जुड़े हैं। अपनी मातृभाषा के शिष्टाचार सूचक कथनों की एक सूची तैयार कीजिए ।
उत्तर :
अभिवादन: नमस्ते, राम राम, सलाम, कैसे हैं आप?
धन्यवाद: धन्यवाद, शुक्रिया, आपका बहुत धन्यवाद।
अनुमति मांगना: क्या मैं…? क्या आप मुझे अनुमति देंगे?
क्षमा मांगना: मुझे क्षमा करें, मुझे माफ कीजिए, मेरी गलती हुई।
अनुरोध करना: क्या आप कृपया… कर सकते हैं? क्या आप मुझे यह दे सकते हैं?
विदा लेना: अलविदा, जय हिंद, शुभ रात्रि।
‘ खीरा … मेदे पर बोझ डाल देता है’ क्या वास्तव में खीरा अपच करता है? किसी भी खाद्य पदार्थ का पच- अपच होना कई कारणों पर निर्भर करता है। बड़ों से बातचीत कर कारणों का पता लगाइए।
उत्तर :
खीरे के अपच करने की बात अक्सर कही जाती है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। खीरा एक स्वस्थ फल है जिसमें पानी और फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो पाचन में सहायक होता है। हालांकि, कुछ मामलों में खीरा अपच का कारण बन सकता है।
यदि किसी व्यक्ति को पहले से ही पाचन संबंधी कोई समस्या है, जैसे कि एसिडिटी या गैस, तो खीरा खाने से उसकी स्थिति और बिगड़ सकती है। तनाव भी पाचन को प्रभावित करता है और अपच का कारण बन सकता है। कुछ दवाइयां भी पाचन को प्रभावित कर सकती हैं और खीरे के साथ प्रतिक्रिया कर सकती हैं।
बड़ों से बातचीत के दौरान मैंने यह भी जाना कि खीरे को खाने का तरीका भी महत्वपूर्ण है। कुछ लोगों ने बताया कि खीरे को छीलकर खाने से अपच की समस्या कम हो सकती है। इसके अलावा, खीरे को अन्य खाद्य पदार्थों के साथ संयोजन में खाने से भी अपच की समस्या हो सकती है।