मानवीय उदासीनता की क्रूर दास्तान: एक जामुन के पेड़ के नीचे दबी जिंदगी
एक विनाशकारी तूफ़ान ने सरकारी सचिवालय के परिसर में खड़े एक विशाल जामुन के पेड़ को जड़ से उखाड़ फेंका। अगले दिन सुबह, माली ने अपने नित्यकर्म के दौरान गिरे हुए पेड़ के तने के नीचे एक अचेत व्यक्ति को पाया।
यह खबर जंगल की आग की तरह फैली और देखते ही देखते कर्मचारियों की भीड़ जमा हो गई। सभी की आँखों में सहानुभूति की झलक थी, परंतु किसी में भी उस दबे हुए इंसान को बचाने की पहल करने का साहस नहीं था। जिम्मेदारी का अंतहीन सिलसिला शुरू हुआ, जहाँ हर विभाग एक-दूसरे पर दोष मढ़ने लगा। कृषि विभाग ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया, तो बागवानी विभाग ने भी अपनी असमर्थता जता दी। वन विभाग ने तर्क दिया कि चूँकि यह एक फलदार वृक्ष था, यह उनके दायरे में आता है, लेकिन किसी भी प्रकार की कार्रवाई के लिए उच्च अधिकारियों की स्वीकृति आवश्यक थी।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान, पेड़ के नीचे दबा व्यक्ति दर्द से कराहता रहा, उसकी धीमी होती आवाज़ में केवल एक ही पुकार थी: “क्या कोई मुझे बचाएगा?” फाइलें लगातार मेज़ों पर घूमती रहीं, टिप्पणियाँ लिखी जाती रहीं, और हर कोई अपनी ज़िम्मेदारी से बचता रहा।
अंततः, जब यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुँचा, तो त्वरित कार्रवाई का आदेश जारी किया गया। किंतु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सरकारी तंत्र की धीमी गति और उदासीनता का शिकार होकर, पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति ने दम तोड़ दिया था।
“जामुन का पेड़” एक हृदय विदारक कहानी है जो सरकारी लालफीताशाही, अत्यधिक संवेदनहीनता और जवाबदेही की कमी पर एक गहरा व्यंग्य करती है। यह दर्शाती है कि कैसे नौकरशाही की जटिलता और निष्क्रियता एक छोटी सी मानवीय आपदा को एक विशाल और दुखद त्रासदी में परिवर्तित कर देती है। यह कहानी हमें यह भी याद दिलाती है कि कभी-कभी सबसे बड़ी बाधा कागज़ों के ढेर और अधिकार क्षेत्र की बहसों में नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना की अनुपस्थिति में निहित होती है।
पाठ के साथ
1)बेचारा जामुन का पेड़ा कितना फलदार था। और इसकी जामुनें कितनी रसीली होती थीं।
(क) ये सवाद कहानी के किस प्रसग में आए हैं?
(ख) इससे लोगों की कैसी मानसिकता का पता चलता है?
उत्तर: जामुन का पेड़ कटने के बाद सचिवालय के लॉन में इकट्ठा हुए लोग अपनी पुरानी यादें ताज़ा कर रहे थे और पेड़ व उसके स्वादिष्ट फलों के प्रति भावनात्मक जुड़ाव दिखा रहे थे, यह बात बिल्कुल सही है। यह दृश्य दर्शाता है कि कैसे लोग किसी चीज़ के चले जाने के बाद उसके महत्व को समझते हैं और उसे याद करते हैं।
आपका विश्लेषण भी पूरी तरह से सटीक है। यह घटना मानवीय स्वभाव के एक विरोधित पहलू को उजागर करती है: किसी चीज़ के खो जाने पर दुःख जताना, लेकिन उसे बचाने या किसी मुश्किल में मदद करने के समय निष्क्रिय रहना। जामुन के पेड़ गिरने और उसके नीचे एक व्यक्ति के दबने की घटना में, सरकारी विभागों की उदासीनता और अकर्मण्यता के कारण तुरंत कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया, जिससे व्यक्ति की जान चली गई।
जब पेड़ काटा जा रहा था, तब लोग उसकी फलदार प्रकृति और मीठे जामुनों को याद करके अफ़सोस कर रहे थे। यह विरोधाभास दर्शाता है कि लोगों में किसी चीज़ के महत्व को समझने और उसके लिए दुःख महसूस करने की भावना तो होती है, लेकिन जब उसे बचाने या किसी मुसीबत में फंसे इंसान की सहायता करने का समय आता है, तो वे अक्सर लापरवाह या अपनी जिम्मेदारी से बचने वाले रवैये को अपना लेते हैं। उनकी सहानुभूति तब जागती है जब स्थिति पूरी तरह से हाथ से निकल जाती है और कुछ भी कर पाना मुमकिन नहीं रह जाता। यह कहानी सरकारी व्यवस्था के साथ-साथ समाज के इस पहलू पर भी गहरा व्यंग्य करती है कि हम अक्सर समस्याओं पर तभी ध्यान देते हैं जब वे हमारे सामने से पूरी तरह से गायब हो जाती हैं।
2)दबा हुआ आदमी एक कवि है, यह बात कैसे पता चली और इस जानकारी का फाइल की यात्रा पर क्या असर पड़ा?
उत्तर:दबा हुआ आदमी एक कवि है, यह बात एक माली द्वारा खोजे गए डायरीनुमा दस्तावेज़ से पता चली।
इस जानकारी का फाइल की यात्रा पर नाटकीय असर पड़ा:
- विभागीय परिवर्तन: पहले व्यापार और कृषि विभागों के पास मौजूद यह फाइल तुरंत सांस्कृतिक विभाग को सौंप दी गई।
- प्राथमिकता में बदलाव: व्यक्ति को अब “अनचाही बाधा” के बजाय एक “अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर” के रूप में देखा जाने लगा, जिससे उसकी जान बचाना एक राष्ट्रीय सम्मान का मुद्दा बन गया।
- उच्च स्तरीय हस्तक्षेप: साहित्यिक अकादमी के सचिव स्वयं कवि से मिलने आए, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाता था।
- निर्णय में विलंब: विडंबना यह रही कि कवि के रूप में पहचान ने, उसे बचाने की प्रक्रिया को और धीमा कर दिया। तुरंत कार्रवाई के बजाय, अब चर्चा कवि के सम्मान, साहित्यिक परंपराओं और सांस्कृतिक महत्व पर केंद्रित हो गई, जिससे फाइल अंतहीन नौकरशाही लालफीताशाही में उलझ गई।
3)कृषि-विभाग वालों ने मामले को हॉटीकल्चर विभाग को सौंपने के पीछे क्या तर्क दिया?
उत्तर:कृषि से उद्यानिकी तक: जामुन के पेड़ की विभागीय यात्रा
कृषि विभाग ने जामुन के पेड़ के मामले को उद्यानिकी (हॉर्टिकल्चर) विभाग को इसलिए सौंपा क्योंकि उनका तर्क था कि जामुन एक फलदार पेड़ है। कृषि विभाग का मुख्य कार्य अनाज और खेती से संबंधित है, जबकि फल और फूल वाले पेड़ उद्यानिकी विभाग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। अतः, इस पेड़ की देखभाल और इससे जुड़े किसी भी निर्णय की जिम्मेदारी उद्यानिकी विभाग की मानी गई।
4)इस पाठ में सरकार के किन-किन विभागों की चर्चा की गई है और पाठ से उनके कार्य के बारे में क्या अंदाजा मिलता है?
उत्तर:नौकरशाही की कार्यप्रणाली: विभागों का विभाजन
प्रस्तुत पाठ में सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला गया है। यह दर्शाता है कि कैसे प्रत्येक विभाग विशिष्ट जनसेवाओं के लिए समर्पित है। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य विभाग बीमारियों की रोकथाम और नागरिकों के स्वास्थ्य की देखभाल करता है, जबकि शिक्षा विभाग शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने और ज्ञान के प्रसार में संलग्न है। इसी प्रकार, कृषि विभाग किसानों की सहायता और फसल उत्पादन में वृद्धि पर केंद्रित है, और यातायात विभाग सड़कों तथा परिवहन व्यवस्था को सुचारु रखता है। यह विभाजन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इन विभागों का मुख्य उद्देश्य जनता की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना है।
पाठ के आस-पास
1)कहानी में दो प्रसंग ऐसे हैं, जहाँ लोग पेड़ के नीचे दबे आदमी को निकालने के लिए कटिबद्ध होते हैं। ऐसा कब-कब होता है और लोगों का यह संकल्प दोनों बार किस-किस वजह से भग होता है?
उत्तर:मानवीय संवेदना का दोहरा मापदंड: स्वार्थ और वर्गभेद की विडंबना
यह घटना मानवीय संवेदना के दोहरे चरित्र को स्पष्ट करती है। शुरुआत में जब कोई व्यक्ति पेड़ के नीचे दबता है, तो उसे बचाने की सहज मानवीय प्रतिक्रिया उभरती है।
वर्ग और स्वार्थ का खेल
जैसे ही उसकी पहचान एक गरीब मजदूर के रूप में सामने आती है, लोगों की हमदर्दी और उसे बचाने का उत्साह तत्काल गायब हो जाता है। इसके विपरीत, जब यह अफवाह फैलती है कि दबा हुआ व्यक्ति एक अमीर सेठ है, तो स्वार्थवश लोग उसे बचाने के लिए फिर से सक्रिय हो जाते हैं, इस उम्मीद से कि उन्हें उससे कोई लाभ मिलेगा।
कड़वी सच्चाई
हालांकि, जब यह सच्चाई सामने आती है कि वह वही गरीब मजदूर है, तो उनका सारा जोश तुरंत ठंडा पड़ जाता है। यह कटु सत्य है कि आज के समाज में इंसानियत से ज़्यादा पैसे और स्वार्थ का महत्व है। गरीब की जान किसी के लिए मायने नहीं रखती, जबकि अमीर की मदद के लिए हर कोई आगे आता है। यह घटना वर्गभेद और स्वार्थपरता की गहरी जड़ों को दर्शाती है, जहाँ मनुष्य की कीमत उसकी आर्थिक स्थिति से आंकी जाती है, न कि उसकी मानवीय गरिमा से।
2)यह कहना कहाँ तक युक्तिसंगत है कि इस कहानी में हास्य के साथ-साथ करुणा की भी अंतर्धारा है। अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:‘जामुन का पेड़’: हास्य का कड़वा घूँट
‘जामुन का पेड़’ कहानी सरकारी कामकाज की अक्षमता और लापरवाही पर हमें खुलकर हँसने का अवसर देती है, मगर इस हँसी के पीछे एक गहरा दर्द और विडंबना छिपी है। पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति की असहनीय पीड़ा, अधिकारियों की संवेदनहीनता, और अंततः उसकी दर्दनाक मृत्यु भीतर तक झकझोर देती है। यह रचना हास्य के आवरण में मानवीय मूल्यों के पतन और एक जीवन की भयावह उपेक्षा का मर्मस्पर्शी चित्रण करती है। यह हमें हँसाते-हँसाते, अंततः करुणा और दुख से भर देती है।
3)यदि आप माली की जगह पर होते, तो हुकूमत के फैसले का इंतजार करते या नहीं? अगर हाँ, तो क्यों? और नहीं, तो क्यों?
उत्तर:मानवीयता सर्वोपरि: माली का दृढ़ निश्चय
मेरे लिए, एक माली के रूप में, सबसे पहले मानवीय जीवन है। पेड़ के नीचे दबे उस व्यक्ति की हर साँस अमूल्य है, और एक पल की भी देरी भारी पड़ सकती है। यह सिर्फ बागवानी की समस्या नहीं, बल्कि एक मानवीय संकट है जिसके लिए तुरंत कार्रवाई चाहिए।
मैं किसी अधिकारी के आदेश या सरकारी प्रक्रिया का इंतज़ार नहीं करता। मेरे पास जो भी साधन हैं, उनसे मैं उस व्यक्ति को फौरन निकालने की कोशिश करता हूँ। भले ही इसमें कुछ नियमों का उल्लंघन हो या अधिकारियों को मेरी कार्रवाई पसंद न आए, मेरे लिए इंसानियत और करुणा किसी भी नौकरशाही प्रक्रिया से कहीं ज़्यादा अहम हैं। मेरे औजार और मेरा श्रम उस जीवन को बचाने के लिए समर्पित हैं, न कि कागज़ भरने के लिए।
शीर्षक सुझाइए
कहानी के वैकल्पिक शीर्षक सुझाएँ। निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखकर शीर्षक गढ़े जा सकते हैं-
● कहानी में बार-बार फ़ाइल का ज़िक्र आया है और अंत में दबे हुए आदमी के जीवन की फाइल पूर्ण होने की बात कही गई है।
● सरकारी दफ्तरों की लंबी और विवेकहीन कार्यप्रणाली की ओर बार-बार इशारा किया गया है।
● कहानी का मुख्य पात्र उस विवेकहीनता का शिकार हो जाता है।
उत्तर:कहानी के वैकल्पिक शीर्षक
यहाँ कहानी के लिए कुछ शीर्षक दिए गए हैं, जो आपके द्वारा सुझाए गए बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं:
- फ़ाइल का बोझ: एक कवि की त्रासदी
- लालफ़ीताशाही का शिकार: जब फ़ाइल भारी पड़ी ज़िंदगी पर
- दफ़्तरों के भँवर में फँसी एक जान
- कागज़ों में उलझी ज़िंदगी: एक कवि की अंतहीन प्रतीक्षा
- सरकारी फ़ाइल: जीवन का अंतिम अध्याय
भाषा की बात
1)नीचे दिए गए अंग्रेजी शब्दों के हिंदी प्रयोग लिखिए-
अर्जेट, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, मेंबर, डिप्टी सेक्रेटरी , चीफ़ सेक्रेटरी , मिनिस्टर, अंडर-सेक्रेटरी, हॉटकल्चर डिपार्टमेंट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट
उत्तर:नीचे दिए गए अंग्रेजी शब्दों के हिंदी प्रयोग इस प्रकार हैं:
अर्जेट (Urgent) – “अत्यावश्यक” या “जरूरी”
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट (Forest Department) – “वन विभाग”
मेंबर (Member) – “सदस्य”
डिप्टी सेक्रेटरी (Deputy Secretary) – “उप सचिव”
चीफ़ सेक्रेटरी (Chief Secretary) – “मुख्य सचिव”
मिनिस्टर (Minister) – “मंत्री”
अंडर-सेक्रेटरी (Under-Secretary) – “अवर सचिव”
हॉटकल्चर डिपार्टमेंट (Horticulture Department) – “उद्यान विभाग”
एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट (Agriculture Department) – “कृषि विभाग”
2)इसकी चर्चा शहर में भी फैल गई और शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए-यह एक संयुक्त वाक्य है, जिसमें दो स्वतंत्र वाक्यों को समानाधिकरण समुच्चयबोधक शब्द और से जोड़ा गया है। संयुक्त वाक्य को इस प्रकार सरल वाक्य में बदला जा सकता है-ड़सकी चर्चा शहर में फैलते ही शाम तक गली-गली से शायर जमा होने शुरू हो गए। पाठ में से पाँच संयुक्त वाक्यों को चुनिए और उन्हें सरल वाक्य में रूपांतरित कीजिए।
उत्तर:संयुक्त से सरल वाक्य रूपांतरण
- संयुक्त: माली ने दबे हुए आदमी को देखा और उसने तुरंत चपरासी को बताया। सरल: माली ने दबे आदमी को देखते ही तुरंत चपरासी को बताया।
- संयुक्त: क्लर्क और चपरासी आपस में बातें कर रहे थे और फाइल चल रही थी। सरल: क्लर्क और चपरासी की बातचीत के बीच फाइल चल रही थी।
- संयुक्त: आदमी कराह रहा था और मुश्किल से साँस ले पा रहा था। सरल: आदमी कराहते हुए मुश्किल से साँस ले पा रहा था।
- संयुक्त: सरकार के विभिन्न विभागों से उत्तर आया और मामला आगे बढ़ता रहा। सरल: सरकार के विभिन्न विभागों से उत्तर आने पर मामला आगे बढ़ता रहा।
- संयुक्त: प्रधानमंत्री ने पेड़ काटने का हुक्म दे दिया था और अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी ले ली थी। सरल: प्रधानमंत्री के पेड़ काटने का हुक्म देते ही अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी ले ली गई थी।
3)साक्षात्कार अपने-आप में एक विधा है। जामुन के पेड़ के नीचे दबे आदमी के फाइल बंद होने (मृत्यु) के लिए जिम्मेदार किसी एक व्यक्ति का काल्पनिक साक्षात्कार करें और लिखें।
उत्तर:बाबू की बेबसी: मानवीयता पर हावी लालफीताशाही
यह कहानी महज़ एक गिरे हुए जामुन के पेड़ तले दबे इंसान की नहीं, बल्कि खोखली सरकारी व्यवस्था की है, जहाँ मानवीयता कागजों के बोझ तले दम तोड़ देती है। अनुभाग अधिकारी संतोष कुमार मानते हैं कि पूरी प्रक्रिया में शुरू से ही चूक हुई। शुरुआत में इसे ‘सामान्य आपदा’ मानकर फाइलें कृषि से वन, उद्यान से लोक निर्माण विभागों के बीच भटकती रहीं।
इस लालफीताशाही में इतना समय लगा कि ज़मीन के नीचे दबा आदमी अपनी आखिरी साँसें गिनता रहा।
बाबू अपनी उदासी व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से उस कवि को बचाना चाहते थे, लेकिन वे प्रक्रियाओं से बंधे थे। उनके अनुसार, नियमों की जटिलताएँ ऐसी हैं कि सामान्य काम भी पहाड़ बन जाते हैं। वे खुद को इस बड़ी मशीनरी का एक छोटा सा पुर्जा मानते हैं, जो पूरे सिस्टम को बदलने में असमर्थ है।
इस दुखद घटना से यही सीख मिलती है कि इंसानियत कभी-कभी कागजों के ढेर में दब जाती है। बाबू का मानना है कि यदि उन्हें तुरंत कार्रवाई की छूट होती और विभाग एक-दूसरे पर ज़िम्मेदारी न थोपते, तो शायद वह व्यक्ति बच जाता। यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि हमें नियमों को सरल बनाने और मानवीय संवेदना को प्रक्रियाओं से ऊपर रखने की नितांत आवश्यकता है, अन्यथा “जामुन के पेड़ गिरते रहेंगे, इंसान दबते रहेंगे… और हम सिर्फ फाइलें घुमाते रहेंगे।” यह सरकारी सिस्टम की वो त्रासदी है, ।