दसवीं कक्षा की हिंदी पाठ्यपुस्तक में अध्याय “पद” प्रसिद्ध कवि सूरदास की रचनाओं का संग्रह है। इन पदों को ब्रज भाषा में लिखा गया है और इनमें गहन भावुकता, भक्ति भावना और प्रेम-विरह की मार्मिक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।
सूरदास, एक अंधे कवि और भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने इन पदों की रचना वृंदावन की गोपियों की भावनाओं और आध्यात्मिक अनुभवों को व्यक्त करने के लिए की। इन कविताओं में कृष्ण के प्रति उनका प्रेम, उनसे विरह और उनके लौटने की तीव्र आकांक्षा चित्रित की गई है।
इस अध्याय में शामिल पद सूरदास की भाषा पर महारत, भावनाओं को उद्दीप्त करने की उनकी क्षमता और मानव मनोविज्ञान की गहरी समझ को प्रदर्शित करते हैं। ये भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की झलक देते हैं और प्रेम, भक्ति और मानवीय स्थिति के उनके कालजयी संदेश से पाठकों को प्रेरित करते रहते हैं।
प्रश्न- अभ्यास
1. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
उत्तर :
गोपियाँ उद्धव को भाग्यवान कहकर एक गहरा व्यंग्य व्यक्त करती हैं। वे यह देखकर दुखी होती हैं कि श्रीकृष्ण के इतने करीब रहते हुए भी उद्धव उनके प्रेम के सागर में डूब नहीं पाए हैं। उनके लिए ‘भाग्यवान’ कहना वास्तव में एक व्यंग्य है, जो दर्शाता है कि गोपियाँ मानती हैं कि उद्धव भगवान के निकट होने के बावजूद भी उनके प्रेम के गहन भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव से वंचित हैं। उनके अनुसार, जीवन का सच्चा अर्थ दिव्य प्रेम के अनुभव में निहित है, और उद्धव इस सच्चाई को नहीं समझ पा रहे हैं, जबकि गोपियाँ स्वयं इस अनुभव को पूर्णता से जी रही हैं। इस व्यंग्य के माध्यम से गोपियाँ कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और प्रेम को रेखांकित करती हैं, साथ ही उस गहन आनंद और आध्यात्मिक संतुष्टि की ओर इशारा करती हैं जो इस गहन प्रेम के अनुभव से प्राप्त होती है।
2. उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है ?
उत्तर :
सूरदास जी के पदों में उद्धव के व्यवहार की तुलना कई चीजों से की गई है, जिससे उनके भावहीन और निर्विकार स्वभाव को स्पष्ट किया गया है। गोपियाँ उद्धव को एक निर्जीव वस्तु की तरह मानती हैं, जैसे पत्थर या लकड़ी, जो भावनाओं को समझ नहीं सकता। उद्धव एक योगी हैं और योग की शिक्षा देते हैं, जिसे गोपियाँ प्रेम और भक्ति से दूर मानती हैं। उनके अनुसार, उद्धव योग के मार्ग पर चलकर प्रेम की गहराई को नहीं समझ पा रहे हैं। उन्हें तपस्वी के रूप में भी देखा जाता है, जो भौतिक सुखों से दूर रहते हैं, लेकिन गोपियाँ मानती हैं कि तपस्या करने से प्रेम का अनुभव नहीं किया जा सकता है। इन तुलनाओं के माध्यम से गोपियाँ यह स्पष्ट करना चाहती हैं कि उद्धव में मानवीय भावनाओं का अभाव है, वह प्रेम और भक्ति की गहराई को नहीं समझ पाते हैं और जीवन के आनंद को जीने में असमर्थ हैं। इन तुलनाओं के माध्यम से सूरदास जी ने प्रेम और भक्ति के महत्व को उजागर किया है। उन्होंने दर्शाया है कि प्रेम ही जीवन का सच्चा आधार है और इसके अभाव में जीवन अधूरा है।
3. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
उत्तर :
कमल का पत्ता: गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि कमल का पत्ता पानी में रहता है, लेकिन वह पानी को सोख नहीं पाता। उसी तरह, उद्धव श्रीकृष्ण के इतने करीब रहते हुए भी उनके प्रेम को अपने हृदय में नहीं समा पाए हैं।
तेल की मटकी: गोपियाँ तेल की मटकी का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि तेल की मटकी पानी में डूब जाती है, लेकिन वह पानी को सोख नहीं पाती। उसी तरह, उद्धव श्रीकृष्ण के प्रेम के सागर में डूबे हुए हैं, लेकिन वह उस प्रेम को अपने अंदर महसूस नहीं कर पाते हैं।
प्रेम की नदी: गोपियाँ प्रेम को एक नदी के रूप में चित्रित करती हैं और कहती हैं कि उद्धव इस नदी में डूबे हुए हैं, लेकिन वह इस नदी के पानी को पी नहीं पा रहे हैं। यानी उद्धव श्रीकृष्ण के प्रेम के इतने करीब रहते हुए भी उसका आनंद नहीं ले पा रहे हैं।
दही का मथना: गोपियाँ दही मथने का उदाहरण देकर कहती हैं कि दही मथने से मक्खन निकलता है, लेकिन उद्धव के मन से प्रेम का मक्खन नहीं निकलता है। यह दर्शाता है कि उद्धव के मन में प्रेम की भावना नहीं है।
4. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर :
उद्धव का योग का उपदेश गोपियों की विरहाग्नि को और भड़का देता है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के वियोग से दुखी हैं, परंतु उद्धव उन्हें योग का उपदेश देकर उनके दुःख को नहीं समझते हैं। उनका संदेश गोपियों के प्रेम और भक्ति को नकारता है और उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाता है।
5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है ?
गोपियों ने यह वाक्यांश उद्धव के योग-संदेश को सुनकर कहा था। इस वाक्य के माध्यम से गोपियाँ यह व्यक्त करना चाहती थीं कि उद्धव ने प्रेम और भक्ति की एक सीमा को लांघ दिया है। वे यह मानती थीं कि प्रेम और भक्ति का अपना एक अलग मर्यादा होता है, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता।
6. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है?
उत्तर :
गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अनेक रूपों में व्यक्त किया। उनकी भक्ति सर्वव्यापी थी, उनके जीवन के हर पहलू में व्याप्त थी। उनका हर विचार, हर शब्द और हर कार्य कृष्ण के प्रति समर्पित था। कृष्ण के वियोग में, वे गहन वेदना से पीड़ित हुईं और अपनी व्यथा को मार्मिक छंदों में व्यक्त किया। उन्होंने अपने ही मन की व्यथा की तुलना बारिश के बिना गरजने वाले बादल से की, जो कृष्ण की अनुपस्थिति में उनकी बेचैनी की स्थिति को दर्शाता है। योग के मार्ग को उनके प्रेम और भक्ति के विरोधी मानते हुए, उन्होंने उद्धव के योग-संदेश का कड़ा विरोध किया, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे उन्हें अपने प्रियतम से दूर कर दिया जाएगा। गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम उनकी विशिष्टता, अटूट भक्ति और गहन भावनात्मक तीव्रता से विशेषित था। यह एक निस्वार्थ प्रेम था, जिसमें किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा नहीं थी, बल्कि केवल अपने प्रियतम की शाश्वत संगति की आकांक्षा थी।
7. गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है?
उत्तर :
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा देने के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने कहा था कि योग का उपदेश उन लोगों को दिया जाना चाहिए जिनका मन अस्थिर है, जो इधर-उधर भटकता रहता है। गोपियों का मानना था कि योग एक ऐसी साधना है जो मन को एकाग्र करने और शांत करने में मदद करती है। परंतु, गोपियों का मन तो पहले से ही कृष्ण के प्रेम में पूरी तरह से लीन था। उनके लिए कृष्ण ही सब कुछ थे। उनके मन में कोई अन्य विचार या इच्छा नहीं थी। इसलिए, उन्हें योग की आवश्यकता नहीं थी। गोपियों ने उद्धव से कहा था कि योग की शिक्षा उन लोगों को देनी चाहिए जो कृष्ण के प्रति सच्चा प्रेम नहीं करते हैं, जिनके मन में भ्रम और संशय है। वे चाहती थीं कि उद्धव योग के माध्यम से ऐसे लोगों को कृष्ण के प्रति समर्पित करें। गोपियों का यह संवाद हमें बताता है कि प्रेम ही सबसे बड़ी शक्ति है। जब हम किसी से सच्चा प्रेम करते हैं तो हमारा मन स्वतः ही उसमें एकाग्र हो जाता है। साथ ही, योग मन को शांत करने और एकाग्र करने का एक शक्तिशाली साधन है।
8. प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
उत्तर :
गोपियाँ योग साधना को प्रासंगिक नहीं मानती थीं। उनके लिए कृष्ण-प्रेम ही मन की एकाग्रता का सर्वोत्तम साधन था। वे मानती थीं कि योग उन लोगों के लिए है जिनका मन अस्थिर है, जबकि उनका मन पहले से ही कृष्ण में लीन था।
9. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ?
उत्तर :
गोपियों के अनुसार, राजा का प्रमुख धर्म अपनी प्रजा की सेवा करना है। उसे न्यायपूर्ण होना चाहिए, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए और उनके कल्याण को बढ़ावा देना चाहिए। एक आदर्श राजा अपने प्रजा की आवश्यकताओं और कल्याण को सर्वोपरि रखते हुए एक पिता के समान कार्य करता है।
10. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं?
उत्तर :
गोपियों ने कृष्ण में कई परिवर्तन देखे, जिनके कारण उन्होंने अपना मन वापस पा लेने की बात कही। मथुरा जाने के बाद, कृष्ण अब गोपियों के साथ पहले जैसा प्रेम नहीं करते थे। वे राजकाज में व्यस्त रहते थे और गोपियों को समय नहीं दे पाते थे। कृष्ण अब योग का संदेश देते थे, जो गोपियों को पसंद नहीं आया। इन सभी परिवर्तनों के कारण गोपियों को लगा कि कृष्ण अब बदल गए हैं और उनका प्रेम व्यर्थ हो गया है। इसलिए उन्होंने अपना मन वापस पा लेने का फैसला किया।
11. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए ?
उत्तर :
गोपियों ने अपने असाधारण वाक्चातुर्य के बल पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया। उनकी वाक्चातुर्य की विशेषताएं अद्वितीय थीं। उन्होंने उद्धव के ज्ञान और योग के मार्ग को व्यंग्यपूर्ण ढंग से चुनौती दी, उनकी बातों को तर्कपूर्ण ढंग से खंडित किया और अपने प्रेम को भावुकता से व्यक्त किया। गोपियों की वाणी में व्यंग्य और सच्चाई का अद्भुत सम्मिश्रण था। उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर तर्क प्रस्तुत किए और उद्धव को समझाया कि ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण सच्चा प्रेम है। गोपियों के शब्दों में सच्चा प्रेम झलकता था, जो उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी। इस प्रकार, गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के माध्यम से उद्धव को यह समझा दिया कि प्रेम ही जीवन का सार है और ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है।
12. संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए?
उत्तर :
सूरदास के भ्रमरगीत भारतीय साहित्य की एक अनूठी रचना हैं। इनमें गोपियों के कृष्ण-प्रेम और उनके विरह की मार्मिक व्यथा को भ्रमर के माध्यम से चित्रित किया गया है। भ्रमर, कृष्ण का प्रतीक है, जो फूलों (गोपियों) का रस चूसकर आगे बढ़ जाता है, इस प्रकार गोपियों के त्याग और पीड़ा को दर्शाता है। इन रचनाओं में गोपियों का विरह, ज्ञानी उद्धव के योग-संदेश का खंडन, सरल और संगीतमय ब्रजभाषा का प्रयोग, विरह रस की प्रधानता, उपमा-अलंकारों का प्रभावी उपयोग, और निर्गुण ब्रह्म के सिद्धांत का खंडन प्रमुख विशेषताएं हैं। सूरदास ने भ्रमरगीतों में अनेक प्रकार के उपमा और अलंकारों का प्रयोग किया है, जिससे उनकी रचनाएँ और अधिक प्रभावशाली बनती हैं। ये रचनाएँ न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से भी गहरा प्रभाव रखती हैं।
रचना और अभिव्यक्ति
13. गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए ।
उत्तर :
अनुभव बनाम ज्ञान: गोपियां उद्धव से कह सकती थीं, “तुमने तो किताबों में ज्ञान पढ़ा है, लेकिन हमने कृष्ण के प्रेम को जीया है। हमारा अनुभव तुम्हारे ज्ञान से कहीं अधिक मूल्यवान है।”
प्रेम ही जीवन है: गोपियां यह तर्क दे सकती थीं कि “प्रेम ही जीवन का सार है। ज्ञान तो केवल एक साधन है, लेकिन प्रेम ही अंतिम सत्य है।”
योग और प्रेम में अंतर: गोपियां उद्धव को योग और प्रेम में अंतर स्पष्ट करते हुए कह सकती थीं, “योग तो शरीर और मन को शांत करने का एक तरीका है, लेकिन प्रेम तो आत्मा को जोड़ने का काम करता है।”
ज्ञान का अहंकार: गोपियां उद्धव के ज्ञान के अहंकार को तोड़ते हुए कह सकती थीं, “तुम अपने ज्ञान पर इतना घमंड क्यों करते हो? क्या ज्ञान से ही सब कुछ मिल जाता है? प्रेम तो बिना किसी शर्त के दिया जाता है।”
प्रकृति का उदाहरण: गोपियां प्रकृति का उदाहरण देते हुए कह सकती थीं, “देखो, पेड़-पौधे बिना किसी स्वार्थ के फल देते हैं। वे ज्ञान नहीं रखते, फिर भी वे प्रेम का प्रतीक हैं।”
समय का महत्व: गोपियां समय के महत्व को बताते हुए कह सकती थीं, “समय बीतता जाता है, लेकिन प्रेम हमेशा रहता है। ज्ञान तो पुराना हो जाता है, लेकिन प्रेम कभी पुराना नहीं होता।”
14. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर :
गोपियों के पास ज्ञान नहीं था, लेकिन उनके पास अनुभव, भावनाओं, सच्ची भक्ति, वाक्चातुर्य की कला और सामाजिक संदर्भ का समर्थन था। इन सबका सम्मिलित प्रभाव ही था जिसने ज्ञानी उद्धव को परास्त किया। गोपियों के शब्दों में अनुभव की गहराई, भावनाओं की तीव्रता, और सच्ची भक्ति की अटूट धारा झलकती थी। उनकी वाक्चातुर्य की कला ने उनके विचारों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया, जबकि सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ ने उनके तर्कों को और अधिक मजबूत बनाया। गोपियों की शक्ति उनके हृदय से निकलती थी, जो ज्ञान से कहीं अधिक शक्तिशाली थी। यह कहानी हमें सिखाती है कि अनुभव, भावनाएं और सच्चा प्रेम ज्ञान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
15. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
गोपियों ने यह कहा कि कृष्ण अब राजनीति पढ़ आए हैं, जब उन्होंने सुना कि कृष्ण अब योग और ज्ञान का मार्ग दिखा रहे हैं। यह कथन गोपियों की निराशा और हताशा को दर्शाता है। उनके लिए, कृष्ण उनके प्रेमी थे, और उनके साथ का व्यक्तिगत संबंध सर्वोपरि था। जब कृष्ण ने ज्ञान का मार्ग चुना, तो उन्हें लगा कि कृष्ण अपने व्यक्तिगत संबंधों को त्याग रहे हैं। उन्हें लगा कि कृष्ण उन्हें धोखा दे रहे हैं, इसलिए उन्होंने यह आरोप लगाया कि कृष्ण अब राजनीति सीख गए हैं। यह कथन समकालीन राजनीति पर भी लागू होता है। आजकल कई बार राजनेता जनता के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाने के बजाय सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए काम करते हैं। वे अपने वादे पूरे नहीं करते हैं और जनता को धोखा देते हैं। गोपियों का यह कथन हमें सिखाता है कि राजनीति में ईमानदारी और पारदर्शिता का बहुत महत्व है। राजनेताओं को जनता के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखना चाहिए और उनके वादों को पूरा करना चाहिए।