Wednesday, January 29, 2025

मेरे बचपन के दिन

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“मेरे बचपन के दिन” में महादेवी वर्मा ने अपने बचपन के अनुभवों को मार्मिकता से चित्रित किया है। उन्होंने लड़की होने के कारण घर में महसूस की गई मायूसी, मां के प्रभाव और स्कूली जीवन के यादगार क्षणों को साझा किया है। उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान से मुलाकात और साहित्यिक चर्चाओं को भी याद किया है। इसके अलावा, उन्होंने उस समय के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों, विशेषकर स्वतंत्रता आंदोलन के प्रभाव को भी अपने बचपन के संदर्भ में बताया है। इस प्रकार, यह संस्मरण न केवल लेखिका के निजी जीवन की झलक देता है, बल्कि उस समय के समाज और परिवेश का भी एक जीवंत चित्र प्रस्तुत करता है।

प्रश्न- अभ्यास

1. ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि-

(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी ?

(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं ?

उत्तर :

क) महादेवी वर्मा के इस कथन से स्पष्ट होता है कि उस समय लड़कियों की स्थिति बेहद दयनीय थी। लड़कियों को बोझ समझा जाता था, उनके जन्म पर शोक मनाया जाता था। उन्हें शिक्षा और अन्य सुविधाओं से वंचित रखा जाता था। बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुप्रथाएं भी उस समय प्रचलित थीं, जिनका सीधा प्रभाव लड़कियों के जीवन पर पड़ता था। लड़कियों को घर के काम-काज तक सीमित रखा जाता था और उन्हें समाज में कोई अधिकार नहीं थे।

ख) आज की स्थिति में लड़कियों के प्रति लोगों का नजरिया काफी बदल चुका है। लड़कियों को अब बराबर का अधिकार दिया जाता है। उन्हें शिक्षित होने का अवसर मिलता है और वे हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं का अंत हो चुका है। सरकार और समाज भी लड़कियों के उत्थान के लिए कई तरह के प्रयास कर रहे हैं।

हालांकि, अभी भी कई क्षेत्रों में लड़कियों के साथ भेदभाव होता है। उन्हें लिंग आधारित हिंसा का शिकार होना पड़ता है, दहेज प्रथा अभी भी कुछ जगहों पर प्रचलित है। लेकिन कुल मिलाकर, लड़कियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

2. लेखिका उर्दू – फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाईं ?

उत्तर :

लेखिका महादेवी वर्मा उर्दू-फ़ारसी इसलिए नहीं सीख पाईं क्योंकि उन्हें इन भाषाओं में कोई रूचि नहीं थी। उन्हें लगता था कि वे इन भाषाओं को सीखने में सक्षम नहीं होंगी।

जब उनके बाबा चाहते थे कि वे उर्दू-फ़ारसी सीखें, तो उनके घर एक मौलवी साहब को पढ़ाने के लिए बुलाया गया। लेकिन लेखिका मौलवी साहब को देखकर डर जाती थीं और चारपाई के नीचे छिप जाती थीं। इस कारण मौलवी साहब ने पढ़ाना छोड़ दिया और लेखिका उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख पाईं।

3. लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?

उत्तर :

लेखिका ने अपनी माँ को एक शिक्षित, संस्कारी और धार्मिक महिला के रूप में चित्रित किया है। उनकी माँ हिंदी और संस्कृत जानती थीं और उन्होंने लेखिका को बचपन से ही साहित्य से परिचित कराया। उनकी माँ ने उन्हें संस्कारवान बनाया और शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित किया, हालांकि उनका स्वभाव थोड़ा सख्त भी था। लेकिन इस सख्ती के साथ ही उनकी माँ का प्रेम भी परिलक्षित होता है। उनकी माँ ने लेखिका को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और उन्हें साहित्य की दुनिया से परिचित कराया, जिसने लेखिका के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।

4. जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?

उत्तर :

महादेवी वर्मा ने जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा इसलिए कहा है क्योंकि आजकल इस तरह के पारिवारिक संबंध दुर्लभ हो गए हैं। पहले के समय में धर्म और जाति के बंधन कम मजबूत थे। लोग एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहते थे और आपसी रिश्ते निभाते थे। महादेवी वर्मा के परिवार और जवारा के नवाब के परिवार के बीच भी ऐसा ही गहरा लगाव था। वे अलग-अलग धर्मों से थे, फिर भी उनके बीच गहरा विश्वास और आत्मीयता थी। वे एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते थे और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करते थे। आज के समय में धार्मिक और जातिगत मतभेदों के कारण लोग एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। विश्वास की कमी और बढ़ता अलगाव इस तरह के पारिवारिक संबंधों को दुर्लभ बना रहा है। महादेवी वर्मा के लिए यह एक खूबसूरत याद है, जिसे वे आज के संदर्भ में एक स्वप्न जैसा मानती हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

5. जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती ?

उत्तर :

यदि मैं जेबुन्निसा के स्थान पर होती, तो मैं महादेवी वर्मा से कुछ अपेक्षाएं रखती। सबसे पहले, मैं चाहती कि वे मुझसे समानता का भाव रखें और मुझे एक नौकरानी के रूप में न देखें, बल्कि एक साथी के रूप में देखें। मैं उनकी रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता से प्रभावित होती और उनसे सीखने का मौका चाहती। मैं चाहती कि वे मुझे प्रोत्साहित करें और मेरे आत्मविश्वास को बढ़ाएं। साथ ही, मैं सम्मान और आदर की अपेक्षा रखती। मैं चाहती कि वे मुझे अपनी रुचियों और गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्रता दें। मुझे लगता है कि इस तरह के संबंध में हम दोनों एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते थे और एक सार्थक रिश्ता बना सकते थे।

6. महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे/करेंगी?

उत्तर :

यदि मुझे काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिलता और मुझे उसे देशहित या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़ता, तो मैं निश्चित रूप से मिश्रित भावनाओं से गुजरूंगी।

एक ओर, मुझे अपने इस उपलब्धि पर गर्व होगा। कड़ी मेहनत और लगन से हासिल किया गया यह पुरस्कार मेरी काव्य प्रतिभा का प्रमाण होगा। दूसरी ओर, मुझे इस बात का भी दुख होगा कि मुझे इस कीमती पुरस्कार को अपने पास नहीं रख पाऊंगी।

लेकिन फिर मैं यह भी सोचूंगी कि देशहित और मानवता की सेवा से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं है। चाँदी का कटोरा तो एक भौतिक वस्तु है, लेकिन देश की सेवा और लोगों की मदद करना एक ऐसा पुण्य कार्य है जो मुझे हमेशा याद रहेगा। इस तरह, मैं अपने इस निर्णय पर गर्व महसूस करूंगी।

यह एक ऐसा अवसर होगा जब मैं अपनी प्राथमिकताओं को फिर से तय कर पाऊंगी। मैं समझ पाऊंगी कि व्यक्तिगत खुशी से बढ़कर देश और समाज की सेवा करना कितना महत्वपूर्ण है। यह अनुभव मुझे और अधिक परोपकारी बनाएगा और मुझे दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करेगा।

7. लेखिका ने छात्रावास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।

उत्तर :

महादेवी वर्मा ने अपने छात्रावास के बहुभाषी परिवेश का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। विभिन्न प्रांतों से आई हुई छात्राएँ अपनी-अपनी मातृभाषा में बातें करती थीं। कोई हिंदी बोलता था तो कोई उर्दू। कुछ मराठी लड़कियाँ आपस में मराठी बोलती थीं, तो अवध की लड़कियाँ अवधी में। बुंदेलखंड की लड़कियाँ बुंदेली में बात करती थीं।

लेकिन सभी छात्राएँ हिंदी और उर्दू का अध्ययन करती थीं और इन दोनों भाषाओं में बातचीत भी करती थीं। इस तरह छात्रावास में एक बहुभाषी वातावरण था।

8. महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस पटल पर भी अपने बचपन की कोई स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए ।

उत्तर :

महादेवी जी के संस्मरण पढ़ते हुए मेरी भी पुरानी यादें ताज़ा हो उठीं। मुझे याद आ रहा है जब मैं छोटी थी, तब हमारी कॉलोनी में सभी बच्चे मिलकर खेलते थे। हमारी एक छोटी सी गैंग थी, जिसमें लड़के और लड़कियाँ दोनों शामिल थे। हम घंटों गली में क्रिकेट खेलते, छुप्पन-छुप्पाई खेलते, या फिर बस ऐसे ही बैठकर बातें करते रहते थे।

हमारी कॉलोनी में एक बड़ा सा पेड़ था, जिसके नीचे हम सब इकट्ठा होते थे। हम उस पेड़ पर चढ़ते, उसके नीचे बैठकर कहानियाँ सुनते, या फिर पेड़ की पत्तियों से बने माला पहनते। गर्मी की छुट्टियों में तो हम पूरा दिन उसी पेड़ के नीचे बिता देते थे।

हमारे बीच एक खास दोस्ती थी। हम एक-दूसरे के दुख-सुख में हमेशा साथ रहते थे। हमारी लड़ाईयाँ भी होती थीं, लेकिन कुछ देर बाद हम फिर से दोस्त बन जाते थे। हमारी दोस्ती इतनी गहरी थी कि हम एक-दूसरे को अपना सब कुछ समझते थे।

हमारी कॉलोनी में रहने वाले सभी लोग एक-दूसरे को जानते थे। हम सब मिलकर त्योहार मनाते थे, एक-दूसरे के घरों में जाकर खाना खाते थे। हमारी कॉलोनी एक बड़ा सा परिवार की तरह थी।

महादेवी जी के संस्मरण पढ़कर मुझे उन दिनों की याद आ गई जब जीवन इतना सरल और सुंदर था। आजकल के बच्चों के पास इतना समय नहीं है कि वे खेल सकें या दोस्तों के साथ समय बिता सकें। वे ज्यादातर समय मोबाइल या कंप्यूटर पर बिताते हैं। मुझे लगता है कि बच्चों को प्रकृति के करीब लाना चाहिए और उन्हें खेलने के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए।

9. महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का ज़िक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।

उत्तर :

आज स्कूल का वार्षिकोत्सव था। मैं बहुत उत्साहित थी, लेकिन साथ ही थोड़ी बेचैन भी। तुम जानती हो, मुझे कविता पढ़ना बहुत पसंद है। इस बार मुझे स्कूल के मंच पर कविता सुनाने का मौका मिला है। लेकिन जैसे-जैसे कार्यक्रम का समय नज़दीक आ रहा है, मैं और बेचैन होती जा रही हूँ।

मुझे याद है, जब मैं छोटी थी, तब मैं हमेशा अपनी दादी से कहानियाँ सुनती रहती थी। वे मुझे इतनी रोचक लगती थीं कि मैं उन कहानियों को अपने दोस्तों को भी सुनाती थी। लेकिन जब बात मंच पर आती है, तो मेरा दिल धकधक करने लगता है। मुझे डर लगता है कि कहीं मैं कुछ गलत न कह दूँ। कहीं मेरी आवाज़ कांप न जाए।

मैंने इस कविता को कई बार पढ़ा है, लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि मैं इसे पूरी तरह से याद नहीं कर पाई हूँ। मुझे डर लग रहा है कि कहीं मैं भूल न जाऊँ।

मैं जानती हूँ कि यह एक अच्छा मौका है। मैं अपनी प्रतिभा को सबके सामने दिखा सकती हूँ। लेकिन मैं इतनी नर्वस हूँ कि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।

काश, मैं जल्दी से मंच पर जाऊँ और यह सब खत्म हो जाए।

भाषा अध्ययन

10. पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढ़कर लिखिए-

विद्वान, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति।

उत्तर :

विद्वान: मूर्ख, अज्ञानी

अनंत: सीमित, परिमित, सांत

निरपराधी: अपराधी, दोषी

दंड: पुरस्कार, इनाम

शांति: अशांति, कोलाहल

11. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए-

निराहारी – निर् + आहार + ई 

सांप्रदायिकता

अप्रसन्नता

अपनापन

किनारीदार

स्वतंत्रता

उत्तर :

2. सांप्रदायिकता

  • उपसर्ग: सां-
  • मूल शब्द: प्र+दाय
  • प्रत्यय: -इकता
  • अर्थ: किसी विशेष धर्म या जाति से संबंधित होने का भाव

3. अप्रसन्नता

  • उपसर्ग: अ-
  • मूल शब्द: प्रसन्न
  • प्रत्यय: -ता
  • अर्थ: प्रसन्न न होना, दुखी होना

4. अपनापन

  • मूल शब्द: अपना
  • प्रत्यय: -पन
  • अर्थ: अपनेपन का भाव, स्वामित्व

5. किनारीदार

  • मूल शब्द: किनारा
  • प्रत्यय: -ईदार
  • अर्थ: किनारे का काम करने वाला, किनारे पर रहने वाला

6. स्वतंत्रता

  • मूल शब्द: स्वतंत्र
  • प्रत्यय: -ता
  • अर्थ: किसी के अधीन न होना, आजाद होना

12. निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिए-

उपसर्ग – अन्, अ, सत्, स्व, दुर्

प्रत्यय – दार, हार, वाला, अनीय

उत्तर :

उपसर्ग

  • अन्: अंधान, अन्नदाता
  • अ: अशांत, अयोग्य
  • सत्: सत्कर्म, सत्पुरुष
  • स्व: स्वदेश, स्वाभिमान
  • दुर्: दुर्घटना, दुर्बल

प्रत्यय

  • दार: किताबदार, दवादार
  • हार: गुहार, दुःखहार
  • वाला: घरवाला, दूधवाला
  • अनीय: पठनीय, देखनीय
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Dr. Upendra Kant Chaubey
Dr. Upendra Kant Chaubeyhttps://education85.com
Dr. Upendra Kant Chaubey, An exceptionally qualified educator, holds both a Master's and Ph.D. With a rich academic background, he brings extensive knowledge and expertise to the classroom, ensuring a rewarding and impactful learning experience for students.
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