कबीर दास की साखियाँ में उन्होंने सांसारिक बंधनों और आध्यात्मिक मुक्ति के बारे में गहराई से विचार किया है। उनकी साखियाँ में उन्होंने सामाजिक बुराइयों, जाति-पात के भेदभाव और बाह्य धार्मिक रीति-रिवाजों की निंदा की है। इसके साथ ही उन्होंने सच्ची भक्ति और आत्मज्ञान के महत्व पर भी जोर दिया है। कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से हमें सिखाया है कि हमें अपने भीतर की आत्मा को पहचानना चाहिए और सच्चे धर्म का पालन करना चाहिए।
पाठ से
1. ‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं’ – उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
कबीर दास ने “तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं” कहकर हमें एक गहरा संदेश दिया है। यहां, तलवार ज्ञान और आत्मज्ञान का प्रतीक है, जबकि म्यान बाहरी दिखावे, रीति-रिवाजों और सामाजिक मान्यताओं का प्रतीक है। कबीर जी का मतलब है कि हमें बाहरी दिखावे पर नहीं, बल्कि आंतरिक सत्य और ज्ञान पर ध्यान देना चाहिए। सच्ची समझदारी और आध्यात्मिक जागृति ही हमें मुक्ति दिला सकती है, न कि बाहरी रीति-रिवाजों का पालन करना।
2. पाठ की तीसरी साखी – जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर :
कबीर दास जी की इस साखी में वे भक्ति के सच्चे अर्थ को उजागर करते हैं। ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ का अर्थ है कि अगर हमारा मन भक्ति करते समय भी इधर-उधर भटक रहा है, तो वह सच्चा भक्ति नहीं है।
कबीर दास जी कहते हैं कि केवल माला फेरना या भगवान का नाम लेना ही भक्ति नहीं है। सच्ची भक्ति के लिए एकाग्रचित होना जरूरी है। अगर हमारा मन भगवान के नाम जपते समय भी दुनियावी बातों में लगा रहता है, तो हमारी भक्ति व्यर्थ है।
3. कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
कबीर दास जी ने अपने दोहों में घास की निंदा करने से मना किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि घास के माध्यम से वे हमें एक गहरा संदेश देना चाहते हैं। वे हमें समझाना चाहते हैं कि हमें किसी भी जीव या वस्तु को छोटा या तुच्छ नहीं समझना चाहिए।
कल्पना कीजिए कि यदि घास का एक छोटा सा तिनका भी हमारी आंख में चला जाए तो हमें कितनी तकलीफ होती है। इसी तरह, अगर हम किसी दूसरे व्यक्ति या जीव की निंदा करते हैं, तो यह हमारे लिए भी कष्टदायक हो सकता है। कबीर दास जी का कहना है कि हर जीव और वस्तु का अपना महत्व है। हमें किसी को भी कमतर नहीं आंकना चाहिए।
4. मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?
उत्तर :
कबीर दास जी का यह दोहा मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष को बखूबी व्यक्त करता है:
“जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।”
पाठ से आगे
1. “ या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय। “
“ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय। “
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का ?
उत्तर :
“आपा” शब्द का सामान्य अर्थ होता है – अपनापन, अहंकार या स्वयं का महत्व। कबीर दास जी ने इस शब्द का प्रयोग अत्यंत सूक्ष्मता से किया है। यहां “आपा” का अर्थ है –
- अहंकार: अपनापन या स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझना।
- स्वार्थ: केवल अपने हित को ही महत्व देना।
- अहंभाव: अपने विचारों और भावनाओं को ही सही मानना।
2. आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
उत्तर :
आपा, आत्मविश्वास और उत्साह तीन अलग-अलग मानसिक अवस्थाएं हैं। आपा का अर्थ है अहंकार, घमंड या स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझना। यह एक नकारात्मक भावना है जो व्यक्ति को अकेला और दुखी बना सकती है। आत्मविश्वास का अर्थ है अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना और खुद पर भरोसा रखना। यह एक सकारात्मक गुण है जो व्यक्ति को सफलता की ओर ले जाता है। उत्साह का अर्थ है किसी कार्य को करने की इच्छा, जोश, और उत्सुकता। यह भी एक सकारात्मक भावना है जो व्यक्ति को प्रेरित करती है और उसे नए काम करने के लिए उत्साहित करती है।
3. सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
उत्तर :
कबीर दास जी की साखियों में मानव मन की गहराइयों को उजागर किया गया है। आपका प्रश्न कबीर दास जी की उस साखी से जुड़ा है जिसमें उन्होंने मानव मन की विविधता को रेखांकित किया है।
आपने ठीक ही कहा है कि सभी मनुष्य एक ही तरह से देखते और सुनते हैं, लेकिन फिर भी उनके विचार एक समान नहीं होते। इसका कारण है हमारी मनोवृत्ति। हम सभी अलग-अलग परिस्थितियों में पले-बढ़े हैं, हमारे अनुभव अलग-अलग हैं और इसीलिए हमारी सोच भी अलग होती है।
4. कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है? ज्ञात कीजिए ।
उत्तर :
कबीर दास जी के दोहों को ‘साखी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये दोहे उनके द्वारा देखे गए जीवन के सत्यों और अनुभवों की गवाही देते हैं। ‘साखी’ शब्द का अर्थ होता है ‘साक्षी’ या ‘गवाह’। कबीर दास जी ने अपनी साखियों में ईश्वर को साक्षी मानकर, जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपनी टिप्पणी की है।